दशहरा, जिसे विजया दशमी भी कहा जाता है, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पूरे भारत में हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान रामचंद्र की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का उत्सव है। इसे “विजया दशमी” नाम भगवती दुर्गा के “विजया” स्वरूप से प्राप्त हुआ है।
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दशहरा या विजया दशमी का महत्व
- रामायण से संबंध:
इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण को परास्त कर अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त की थी। - दुर्गा पूजा का समापन:
बंगाल और देश के अन्य हिस्सों में दुर्गा पूजा के नौ दिवसीय अनुष्ठान का समापन भी इसी दिन होता है। - विजय काल का महत्व:
आश्विन शुक्ल दशमी को “विजय काल” नामक विशेष समय होता है, जो सभी कार्यों की सफलता और शत्रु पर विजय प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। - शमी वृक्ष की पूजा:
शमी वृक्ष को पवित्र माना गया है। इस वृक्ष की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
विजया दशमी पर होने वाले प्रमुख आयोजन
- रामलीला और रावण दहन:
देशभर में रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है, और इस दिन रावण, कुंभकरण, और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। - दुर्गा विसर्जन:
देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, और भक्तगण उनकी विदाई करते हैं। - शस्त्र पूजा:
क्षत्रिय इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं, जबकि ब्राह्मण सरस्वती पूजन और व्यापारी अपने व्यवसायिक उपकरणों की पूजा करते हैं। - शमी पूजन:
शमी वृक्ष की पूजा कर उससे आशीर्वाद मांगा जाता है।
विजया दशमी कथा
भगवान राम की विजय कथा:
एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा कि लोगों में जो दशहरे का त्यौहार प्रचलित है, इसका क्या फल है ? शिवजी ने बताया कि आश्विन शुक्ल दशमी को सांयकाल में तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक काल होता है। जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाले राजा को इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसलिए यह दिन बहुत पवित्र माना गया है और क्षत्रिय लोग इसे अपना प्रमुख् त्यौहार मानते हैं। राजा को अपने तमाम दल-बल को सुसज्जित करके पूर्व दिशा में जाकर शमी वृक्ष का पूजन करना चाहिये। पूजन करने वाला शमी के सामने खड़ा होकर इस प्रकार ध्यान करे - हे शमी ! तू सब पापों को नष्ट करने वाला है और शत्रुओं को भी पराजय देने वाला है। तूने अर्जुन का धनुष धारण किया और रामचन्द्रजी से प्रियवाणी कही।
अर्जुन और शमी वृक्ष की कथा:
पार्वतीजी बोलीं-शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस कारण धारण किया था तथा रामचन्द्रजी से कब और कैसी प्रियवाणी कही थी, सो कृपा कर समझाइये।
शिवजी ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर इस शर्त पर वनवास दिया था कि वे बारह वर्ष तक प्रकट रूप से वन में जहाँ चाहें फिरें किन्तु एक वर्ष बिल्कुल अज्ञातवास में रहे। यदि इस वर्ष में उन्हें कोई पहचान लेगा तो उन्हें बारह वर्ष और भी वनवास भोगना पड़ेगा। उस अज्ञातवास के समय अर्जुन अपना धनुष बाण एक शमी वृक्ष पर रखकर राजा विराट के यहाँ वृहन्नला के वेष में रहे थे। विराट के पुत्र कुमार ने गौओं की रक्षा के लिए अर्जुन को अपने साथ लिया और अर्जुन ने शमी के वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। शमी वृक्ष ने अर्जुन के हथियारों की रक्षा की थी। विजय दशमी के दिन रामचन्द्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करने के समय शमी वृक्ष ने कहा था कि आपकी विजय होगी। इसलिए विजयकाल में शमी वृक्ष की भी पूजा होती है।
राजा युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण का संवाद:
एक बार राजा युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण ने भी उन्हें बतलाया था कि हे राजन ! विजय दशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी, घोड़ों का श्रृंगार करना चाहिए तथा गाजे बाजे के साथ मंगलाचार करना चाहिये। उसे उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके, अपनी सीमा से बाहर जाना चाहिए और वहाँ वास्तु-पूजा करके अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण लगाएं और पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करे। ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी घोड़ा, अस्त्र शस्त्रादि का निरीक्षण करना चाहिए। यह सब क्रिया सीमांत में करके अपने महल में लौट आना चाहिए। जो राजा इस विधि से पूजा करता है वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
विजया दशमी की पूजा विधि
- स्नान और संकल्प:
इस दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें। - शस्त्र पूजा:
अपने शस्त्रों, उपकरणों, या व्यापारिक वस्तुओं की पूजा करें। - शमी पूजन:
शमी वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर उसकी पूजा करें और इस मंत्र का जाप करें: “हे शमी! तू पापों को नष्ट करने वाला और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला है। तुझे प्रणाम है।” - रामलीला और रावण दहन:
सांयकाल रामलीला और रावण दहन के कार्यक्रम में भाग लें। - दुर्गा विसर्जन:
देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन करें और उनकी कृपा का आशीर्वाद लें।
दशहरा या विजया दशमी का संदेश
विजया दशमी अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा विजयी होता है।
FAQ: विजया दशमी के बारे में सामान्य प्रश्न
1. विजया दशमी क्यों मनाई जाती है?
यह पर्व भगवान राम की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
2. शमी वृक्ष की पूजा का क्या महत्व है?
शमी वृक्ष को विजय और पापों के नाश का प्रतीक माना जाता है।
3. दशहरे पर रावण दहन क्यों किया जाता है?
रावण दहन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
4. क्या दशहरे के दिन विशेष मुहूर्त होता है?
जी हां, “विजय काल” नामक मुहूर्त इस दिन सभी कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
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