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पूजा विधियाँ, आरती मंत्र, व्रत त्यौहार

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व्रत / त्यौहार

वट सावित्री व्रत: सुहागिन स्त्रियों का प्रमुख पर्व

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। व्रत रखने वाली महिलाओं का सुहाग अचल माना जाता है। इस दिन सत्यवान-सावित्री और यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से पुनः जीवित प्राप्त किया था।


व्रत का महत्व

  • यह व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक है।
  • सावित्री जैसी धर्मनिष्ठा और पतिव्रता स्त्री के आदर्श को स्मरण कर महिलाओं को अपने सुहाग की रक्षा की प्रेरणा मिलती है।
  • व्रत से पारिवारिक सुख, सौभाग्य, और संतान का आशीर्वाद मिलता है।

पूजा विधि-विधान

  1. सामग्री एकत्र करें:
    पूजा के लिए मिट्टी की मूर्तियाँ (सत्यवान-सावित्री और यमराज), जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगा चना, फूल और धूप की आवश्यकता होती है।
  2. वट वृक्ष की पूजा करें:
    • वट वृक्ष के नीचे सत्यवान-सावित्री और यमराज की मिट्टी की मूर्तियाँ स्थापित करें।
    • वृक्ष की जड़ों में जल अर्पित करें।
    • कच्चा धागा लेकर वृक्ष के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करें।
  3. व्रत कथा सुनें:
    व्रत के दौरान सत्यवान-सावित्री की कथा सुनना अनिवार्य है।
  4. बायना निकालें:
    पूजा के बाद भीगे हुए चने, मौली, और यथाशक्ति धन (रुपया) लेकर बायना निकालें।
    • यह बायना अपनी सास को दें और उनके चरण स्पर्श करें।
    • यदि बहन या बेटी गाँव में हो तो उन्हें भी बायना भेजें।

व्रत कथा

सावित्री का जन्म और विवाह

मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत गुणवान और रूपवती थी। उसने स्वयं द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना पति चुना। परंतु जब नारद ऋषि को यह पता चला कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष शेष है, तो उन्होंने सावित्री के पिता को इस बारे में बताया।

राजा अश्वपति ने सावित्री को यह विवाह न करने की सलाह दी, लेकिन सावित्री ने दृढ़ निश्चय करते हुए कहा:
“आर्य कन्याएँ एक बार ही अपना पति चुनती हैं। मैं सत्यवान को ही अपना जीवनसाथी मान चुकी हूँ।”

विवाह के पश्चात सावित्री अपने ससुराल में सास-ससुर की सेवा में लग गई। सत्यवान के ससुर का राज्य छिन चुका था, और वह वन में रहते थे।


सत्यवान की मृत्यु और यमराज का वरदान

नारद द्वारा बताए गए दिन सत्यवान लकड़ी काटने वन गया। सावित्री भी उसके साथ गई। सत्यवान पेड़ से नीचे उतरते ही सिर दर्द की शिकायत करते हुए वट वृक्ष के नीचे लेट गया और प्राण त्याग दिए।

यमराज सत्यवान के प्राण लेकर चल दिए। सावित्री ने उनका पीछा करते हुए कहा:
“जहाँ पति, वहीं पत्नी। यही धर्म और मर्यादा है।”

यमराज ने सावित्री की धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर तीन वरदान मांगे:

  1. सास-ससुर की नेत्र ज्योति और दीर्घायु
  2. ससुर को खोया हुआ राज्य वापस मिलना
  3. स्वयं के लिए सौ पुत्रों का आशीर्वाद

जब यमराज ने सौ पुत्रों का वरदान दिया, तो सावित्री ने बुद्धिमानी से कहा:
“पति के बिना मैं पुत्रों की माँ कैसे बन सकती हूँ? कृपया मेरे पति को जीवित करें।”

सावित्री की चतुराई और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए।


व्रत का संदेश

  1. धर्म और निष्ठा: सावित्री का चरित्र महिलाओं को धर्म और निष्ठा का पालन करने की प्रेरणा देता है।
  2. संकट में धैर्य: सावित्री ने विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और बुद्धिमानी का परिचय दिया।
  3. परिवार के लिए बलिदान: व्रत हमें यह सिखाता है कि परिवार और रिश्तों के लिए समर्पण महत्वपूर्ण है।

FAQs: वट सावित्री व्रत

1. वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है?
यह व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक है और महिलाओं के सौभाग्य और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है।

2. व्रत में किन चीज़ों का उपयोग होता है?
मिट्टी की मूर्तियाँ, जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगे चने, फूल और धूप का उपयोग किया जाता है।

3. क्या वट वृक्ष की पूजा करना अनिवार्य है?
हाँ, वट वृक्ष की पूजा व्रत का अभिन्न हिस्सा है। यह व्रक्ष दीर्घायु और सौभाग्य का प्रतीक है।

4. क्या व्रत में अन्न का सेवन कर सकते हैं?
व्रत के दौरान पूर्ण उपवास करना चाहिए या फलाहार कर सकते हैं।

5. वट सावित्री व्रत किसके लिए शुभ है?
यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए शुभ है और उनके पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है।


निष्कर्ष

वट सावित्री व्रत स्त्रियों की अटल श्रद्धा, धर्मनिष्ठा, और पति के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व परिवार और रिश्तों के महत्व को उजागर करता है। सावित्री का जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और निष्ठा का पालन करना चाहिए।

“हे वट देवता, जैसे सावित्री को सुहाग दिया वैसे सब सुहागिनों को सौभाग्य प्रदान करें।”


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