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उमा महेश्वर व्रत
व्रत / त्यौहार

उमा महेश्वर व्रत: क्या है इसका महत्व और पूजा विधि?

उमा महेश्वर व्रत भाद्रपद पूर्णिमा को भगवान शिव और देवी उमा (पार्वती) की पूजा के लिए किया जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से भगवान शिव और देवी उमा की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत 15 वर्षों तक करने से धन, समृद्धि और शुभ फल की प्राप्ति होती है।


उमा महेश्वर व्रत की पूजा विधि

चरणबद्ध प्रक्रिया:

  1. प्रातःकाल शुद्धता और संकल्प: प्रातः स्नान करके शुद्ध हो जाएं और व्रत का संकल्प लें।
  2. भगवान शंकर की पूजा: भगवान शिव की मूर्ति या चित्र को स्नान कराकर वेलपत्ते, पुष्प, और धूप दीप अर्पित करें। भगवान शंकर और देवी उमा की विशेष पूजा करें।
  3. रात्रि जागरण: पूजा के बाद रात्रि में मन्दिर में जागरण करें और भजन, कीर्तन करें। यह विशेष रूप से ध्यान और समर्पण का समय होता है।
  4. व्रत का समापन: व्रत का समापन करते समय यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें। यह व्रत 15 वर्षों तक निरंतर किया जाता है।

उमा महेश्वर व्रत की कथा

कथा का सारांश:
एक बार भगवान विष्णु ने दुर्वासा ऋषि से भगवान शिव की माला प्राप्त की और उसे अपने गरुड़ को पहनने के लिए दे दी। इससे दुर्वासा ऋषि नाराज हो गए और भगवान विष्णु को शाप दिया कि तुम्हारे पास से लक्ष्मी चली जाएगी और तुम्हे सभी वस्तुएं खोनी पड़ेंगी।

भगवान विष्णु ने दुर्वासा ऋषि से इस शाप से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने उन्हें उमा महेश्वर व्रत करने की सलाह दी। भगवान विष्णु ने व्रत किया और परिणामस्वरूप उन्होंने सभी वस्तुएं पुनः प्राप्त कीं, और शाप से मुक्त हो गए।


व्रत का महत्व

  1. धन और समृद्धि की प्राप्ति:
    इस व्रत को करने से व्यक्ति को अत्यधिक धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
  2. शिव और उमा की कृपा:
    व्रत के प्रभाव से भगवान शिव और देवी उमा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  3. सम्पूर्ण शुभता का वर्धन:
    यह व्रत जीवन में सभी तरह की खुशियाँ और शुभता लाता है।

FAQs

1. उमा महेश्वर व्रत कब करना चाहिए?

यह व्रत भाद्रपद पूर्णिमा को किया जाता है।

2. क्या उमा महेश्वर व्रत का पालन केवल 1 दिन करना होता है?

यह व्रत 15 वर्षों तक निरंतर किया जाता है।

3. व्रत के अंत में क्या करना चाहिए?

व्रत के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देना चाहिए।


निष्कर्ष

उमा महेश्वर व्रत विशेष रूप से धन, समृद्धि और शांति की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यदि इस व्रत को विधिपूर्वक किया जाए, तो जीवन में समस्त संकट समाप्त हो सकते हैं और भगवान शिव और देवी उमा की असीम कृपा प्राप्त होती है।


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