भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला जन्माष्टमी पर्व, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है। इस दिन को देशभर में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। श्रीकृष्ण, जो कि विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं, मथुरा के राजा कंस की जेल में देवकी और वसुदेव के पुत्र रूप में जन्मे थे।
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जन्माष्टमी का महत्त्व और पूजन-विधि
भाद्रपद अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का योग
इस पर्व का विशेष महत्व रोहिणी नक्षत्र के साथ जुड़ा हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को हुआ था, इसलिए इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और रात 12 बजे तक पूजा-अर्चना करते हैं।
- मंदिरों को सजाया जाता है।
- झाँकियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
- भगवान का श्रृंगार और झूला सजाने की परंपरा है।
रात 12 बजे शंख और घंटों की ध्वनि के साथ श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आरती और प्रसाद वितरण किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्म की अद्भुत कथा
पृथ्वी का दुख और विष्णु का अवतरण
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे। पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए : तथा अपने उद्धार के लिए ब्रह्माजी के पास गई। ब्रह्माजी सब – देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गये। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा एवं सब देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली- भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्धार कीजिए। यह सुनकर विष्णु बोले- मैं ब्रज मण्डल में वसुदेव देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। तुम सब देवतागण ब्रज • भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए। इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप गोपियों के रूप में पैदा हुए।
कंस का अत्याचार
द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वसुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि “हे कंस ! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा।
आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा-न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा। वसुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की • आठवीं सन्तान से तुम्हें भय है। इसलिये मैं इसकी आठवीं सन्तान को तुम्हें सौंप दूँगा। तुम्हारे समझ में जो आवे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वसुदेव जी की बात स्वीकार कर लीं और. वसुदेव-देवकी को कारागार में बन्द कर दिया।
तत्काल नारदजी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगी। कंस ने नारदजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालकों को निर्दयता पूर्वक मार डाला।
श्रीकृष्ण का जन्म
भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वसुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, “अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वसुदेव जी की हथकड़ियाँ खुल गईं। दरवाजे अपने आप खुल गये। पहरेदार सो गये। वसुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगीं।
भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण छूने के बाद यमुना घट गई। वसुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये। बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये। वसुदेव जी के हाथों में हथकड़ियाँ पड़ गईं, पहरेदार जाग गये। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली, “हे कंस ! मुझे मारने से क्या लाभ है? तुझे मारने वाला तो गोकुल में पहुँच चुका है।” यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया।
कंस का पतन
कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे, लेकिन भगवान ने अपनी दिव्य शक्तियों से सभी का वध किया। अंततः उन्होंने कंस को मारकर उग्रसेन को पुनः मथुरा का राजा बनाया।
जन्माष्टमी पर्व की परंपराएँ
- मंदिरों में झाँकियाँ: श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रदर्शन होता है।
- मटकी फोड़ उत्सव: गोकुल में कृष्ण की माखन चोरी की लीला को दर्शाने के लिए दही-हांडी का आयोजन किया जाता है।
- भजन-कीर्तन: भक्त भगवान के भजन गाते हैं।
- रात्रि जागरण और व्रत: भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि को पूजा के बाद व्रत खोलते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का आधुनिक महत्व
आज भी यह पर्व भारतीय संस्कृति में जीवन के उत्साह और भक्ति का प्रतीक है। यह त्योहार भगवान के प्रति निष्ठा, प्रेम, और धैर्य को सिखाता है।
FAQs: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
1. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाती है?
जन्माष्टमी भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है।
2. क्या रोहिणी नक्षत्र का महत्व है?
हाँ, श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए यह तिथि विशेष मानी जाती है।
3. जन्माष्टमी पर उपवास कैसे रखें?
भक्त दिनभर फलाहार करते हैं और रात 12 बजे पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर उपवास समाप्त करते हैं।
4. मटकी फोड़ का क्या महत्व है?
यह भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और माखन चोरी की कथा का प्रतीक है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी न केवल भगवान की दिव्य लीलाओं का स्मरण कराती है, बल्कि हमें धर्म, सत्य, और न्याय के पथ पर चलने की प्रेरणा भी देती है। आप इस कथा को पढ़कर अपनी राय साझा करें और अपने मित्रों के साथ साझा करें। जय श्रीकृष्ण!
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