माघ मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला शीतला षष्ठी व्रत विशेष रूप से आयु और संतान की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत का विशेष महत्त्व बंगाल में अधिक देखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन शीतला माता की पूजा करने से पापों का शमन होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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पूजा विधि
- इस दिन व्रत रखने वाली स्त्रियाँ ठंडे जल से स्नान करती हैं।
- गर्म जल से स्नान और गर्म भोजन करने की मनाही होती है।
- शीतला माता की षोडशोपचार पूजा की जाती है।
- कुत्ते को तिलक लगाकर और पकवान खिलाकर उसकी पूजा भी की जाती है।
शीतला षष्ठी व्रत कथा
किसी समय एक वैश्य के सात पुत्र थे, लेकिन विवाह के बावजूद वे सब संतानहीन थे। एक वृद्धा के उपदेश पर सातों पुत्रवधुओं ने शीतला माता का व्रत किया और वे सभी संतानवती हो गईं।
एक बार वैश्य की पत्नी ने व्रत का अपमान करते हुए गर्म जल से स्नान किया और गर्म भोजन किया। उसने अपनी बहुओं से भी ऐसा ही करवाया। उसी रात उसने स्वप्न में अपने पति को मृत देखा और पुत्रों व बहुओं को भी मरणासन्न पाया।
रोते-बिलखते हुए वह जंगल में चली गई जहाँ उसे एक वृद्धा मिली जो ज्वाला से तड़प रही थी। वह वृद्धा स्वयं शीतला माता थीं। उन्होंने वैश्य पत्नी से दही मांगा। वैश्य पत्नी ने दही लाकर देवी के शरीर पर लगाया जिससे उनकी ज्वाला शांत हो गई। पश्चाताप करने पर शीतला माता ने प्रसन्न होकर उसके पति और पुत्रों को पुनः जीवित कर दिया।
FAQs
1. शीतला षष्ठी का क्या महत्व है?
शीतला षष्ठी व्रत आयु वृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
2. शीतला षष्ठी पर क्या करना चाहिए?
ठंडे जल से स्नान करें, ठंडा भोजन ग्रहण करें और शीतला माता की पूजा करें।
3. क्या शीतला षष्ठी पर गर्म भोजन करना वर्जित है?
हाँ, इस दिन गर्म भोजन करना वर्जित है।
निष्कर्ष
शीतला षष्ठी व्रत शीतला माता की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करने पर जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो तो कृपया शेयर करें और अपने अनुभव हमारे साथ साझा करें।
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