षट्तिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत में छः प्रकार के तिलों का उपयोग होता है, इसलिए इसे ‘षट्तिला’ एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है और बैकुण्ठधाम की प्राप्ति होती है।
Table of contents
पूजा विधि-विधान
- पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान विष्णु को स्नान कराएं।
- तिल मिश्रित भोजन करें और ब्राह्मण को भी भोजन कराएं।
- दिनभर हरि कीर्तन करें और रात्रि में भगवान की प्रतिमा के सामने विश्राम करें।
- षट्तिला व्रत के नियमों का पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
षट्तिला एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में वाराणसी में एक गरीब अहीर रहता था, जो जंगल से लकड़ी काटकर बेचता था। कभी लकड़ी न बिकने पर उसका परिवार भूखा रह जाता था। एक दिन वह साहूकार के घर लकड़ी बेचने गया। साहूकार के यहाँ उसने देखा कि किसी उत्सव की तैयारी चल रही है।
अहीर ने सेठजी से डरते-डरते पूछा- सेठजी, यह किस चीज की तैयारी हो रही है? सेठजी ने बताया कि यह षट्तिला व्रत की तैयारी की जा रही है। इस व्रत के करने से गरीबी, रोग, पाप हत्या आदि भवबंधनो से छुटकारा तथा धन एवं पुत्र की प्राप्ति होती है।
घर पहुँचकर अहीर ने भी अपनी स्त्री सहित षट्तिला व्रत को विधिवत किया। फलस्वरूप वह कंगाल से धनवान बन गया।
FAQs
1. षट्तिला एकादशी का क्या महत्व है?
षट्तिला एकादशी व्रत से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. षट्तिला एकादशी पर कौन-कौन से तिल का उपयोग होता है?
षट्तिला एकादशी पर स्नान, भोजन, दान, तर्पण, हवन और उबटन में तिल का प्रयोग होता है।
3. षट्तिला एकादशी व्रत कैसे करें?
भगवान विष्णु का तिल मिश्रित पंचामृत से स्नान कराएं, तिल युक्त भोजन करें और ब्राह्मणों को दान दें।
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