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शरद पूर्णिमा व्रत विधि और महत्व
व्रत / त्यौहार

शरद पूर्णिमा: अमृत वर्षा का पर्व, व्रत विधि और महत्व

शरद पूर्णिमा भारतीय परंपरा और धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का खगोलीय महत्व भी है क्योंकि यह मान्यता है कि इस दिन का चंद्रमा षोडश कलाओं से परिपूर्ण होता है और अमृत की वर्षा करता है।


शरद पूर्णिमा का महत्व

  1. अमृत वर्षा की मान्यता:
    शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती है।
  2. व्रत और पूजा का महत्व:
    इस दिन किए गए व्रत और पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  3. सुख और समृद्धि का प्रतीक:
    यह पर्व विशेष रूप से परिवार की समृद्धि और संतान सुख के लिए किया जाता है।

पूजा विधि-विधान

1. प्रातःकाल पूजा

  • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अपने आराध्य देव को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं।
  • गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य से पूजा करें।

2. रात्रिकाल पूजा और अनुष्ठान

  • खीर और पूरी बनाएं और भगवान को भोग लगाएं।
  • रात्रि में जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
  • चाँदनी रात में खीर को खुले आसमान के नीचे रखें।
  • अगले दिन यह खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और सभी में बांटें।

3. कथा सुनने की विधि

  • पूजा के दौरान एक लोटे में जल, एक गिलास में गेहूं, और दौने में रोली और चावल रखें।
  • कथा सुनते समय हाथ में 13 गेहूं के दाने लें और कथा सुनें।
  • कथा के अंत में जल को अर्घ्य दें और गेहूं के दाने चढ़ा दें।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा

एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी बेटी पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी बेटी अधूरा व्रत करती थी। इस कारण छोटी बेटी की संतान जन्म लेते ही मर जाती थी।

पंडितों ने छोटी बेटी को बताया कि वह पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती है, इसलिए यह समस्या हो रही है। इसके बाद उसने विधिपूर्वक व्रत किया। एक बार उसका बच्चा फिर भी मर गया। उसने बच्चे को कपड़े से ढक दिया और बड़ी बहन को बुलाया। जब बड़ी बहन बैठी तो उसके वस्त्र छूने से बच्चा जीवित हो गया।

इस घटना के बाद शरद पूर्णिमा व्रत की महिमा सब जगह फैल गई।


शरद पूर्णिमा के विशेष अनुष्ठान

  1. अमृतमय खीर का सेवन:
    चंद्रमा की किरणों में रखी खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानी जाती है।
  2. सुई पिरोने की परंपरा:
    शरद पूर्णिमा की रात सुई पिरोने का कार्य शुभ माना जाता है।
  3. उजमन विधि:
    • 13 पूर्णिमा व्रत पूरे होने पर चांदी की घंटी में मेवा, चावल, और धन रखकर सासुजी को अर्पित करें।
    • चुंद पूर्णिमा करने वाले व्रती एक पूर्णिमा के बाद चुनरी भेंट करें।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. शरद पूर्णिमा का क्या महत्व है?

यह दिन चंद्रमा की अमृतमय किरणों से स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने का अवसर है।

2. क्या शरद पूर्णिमा व्रत केवल महिलाएं करती हैं?

नहीं, यह व्रत पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं।

3. चांदनी रात में खीर क्यों रखी जाती है?

मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर को औषधीय गुण प्रदान करती हैं।

4. उजमन का क्या महत्व है?

उजमन व्रत की पूर्णता और संतोष का प्रतीक है। यह विधि पारिवारिक समृद्धि के लिए की जाती है।


निष्कर्ष

शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और खगोलीय घटनाओं के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है। इस दिन की गई पूजा और व्रत जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाते हैं।

क्या आपने शरद पूर्णिमा व्रत किया है? अपने अनुभव हमें कमेंट में जरूर बताएं और यह जानकारी दूसरों के साथ साझा करें।


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