सन्तान सप्तमी व्रत पुत्र प्राप्ति और सन्तान की दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस दिन शिव और पार्वती की पूजा का विधान है। इस व्रत के प्रभाव से सन्तान सुख की प्राप्ति होती है और पूर्व जन्म के दोष समाप्त होते हैं। यह व्रत विशेषकर माताओं के लिए अत्यधिक फलदायक माना जाता है।
Table of contents
सन्तान सप्तमी व्रत की पूजा विधि
पूजन सामग्री:
- चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य
- सुपारी, नारियल, खीर-पूड़ी, गुड़ के पूए
- शिव और पार्वती की प्रतिमा या चित्र
पूजा प्रक्रिया:
- दोपहर के समय चौक पूरकर शिव और पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
- चन्दन, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- खीर-पूड़ी और गुड़ के पूए बनाकर भगवान को भोग लगाएं।
- शिवजी को डोरा अर्पित कर वरदान मांगें।
- कथा सुनें और व्रत का पालन करें।
सन्तान सप्तमी व्रत कथा
श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद
एक बार युधिष्ठिर से वार्तालाप के दौरान श्रीकृष्ण ने कहा:
“युधिष्ठिर, मेरे जन्म से पहले मथुरा में लोमेश ऋषि पधारे थे। उन्होंने मेरे माता-पिता देवकी और वासुदेव को एक उपाय बताया।”
लोमेश ऋषि का संदेश
ऋषि ने देवकी से कहा:
“हे देवकी! कंस ने तुम्हारे कई पुत्रों को मार दिया, जिससे तुम्हें गहरा दुख हुआ। इस दुःख से छुटकारा पाने और संतान सुख पाने के लिए तुम ‘सन्तान सप्तमी व्रत’ करो।”
देवकी ने व्रत की विधि पूछी, तो लोमेश ऋषि ने एक प्राचीन कथा सुनाई।
राजा नहुष और व्रत की कथा
अयोध्या का राजा नहुष
प्राचीन काल में अयोध्या में राजा नहुष राज करते थे। उनके राज्य में विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी रूपवती के साथ रहता था।
चन्द्रमुखी और रूपवती की मित्रता
रानी चन्द्रमुखी और रूपवती गहरी सहेलियां थीं। एक दिन वे सरयू नदी में स्नान करने गईं। वहां उन्होंने देखा कि अन्य स्त्रियां भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर रही थीं।
व्रत की जानकारी
उन स्त्रियों ने बताया:
“यह ‘मुक्ताभरण व्रत’ है। इसे करने से सुख और संतान की प्राप्ति होती है। हम जीवन भर यह व्रत करेंगी।”
चन्द्रमुखी और रूपवती ने भी व्रत करने का संकल्प लिया और शिवजी का डोरा बांध लिया।
व्रत का संकल्प भूलने का परिणाम
पशु योनियों में जन्म
संकल्प भूलने के कारण मृत्यु के बाद रानी चन्द्रमुखी वानरी बनी और रूपवती मुर्गी की योनि में जन्मीं।
पुनर्जन्म और नया जीवन
कुछ समय बाद वे दोनों मनुष्य योनि में पुनः जन्मीं।
- रानी चन्द्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनीं और उनका नाम ईश्वरी रखा गया।
- रूपवती ने एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया और उसका नाम भूषणा रखा गया।
संतान सुख और व्रत का प्रभाव
ईश्वरी ने व्रत नहीं किया, जिसके कारण वह बाँझ रही। बाद में उसे एक गूंगा और बहरा पुत्र हुआ, लेकिन वह नौ वर्ष की उम्र में मर गया।
भूषणा ने व्रत को याद रखा और उसके आठ सुंदर और स्वस्थ पुत्र हुए।
रानी ईश्वरी की ईर्ष्या और अत्याचार
भूषणा के पुत्रों पर विष का प्रयास
भूषणा के पुत्रों को देखकर रानी ईश्वरी को ईर्ष्या हुई। उसने उन्हें भोजन में विष देकर मारने की योजना बनाई।
लेकिन भूषणा के व्रत के प्रभाव से बच्चों को कुछ नहीं हुआ।
यमुना में फेंकने की योजना
रानी ने नौकरों से बच्चों को यमुना में धकेलने को कहा। पर व्रत के प्रभाव से वे बच्चे इस बार भी बच गए।
जल्लादों से हत्या का प्रयास
ईश्वरी ने जल्लादों से बच्चों को मारने का आदेश दिया। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद बच्चे नहीं मरे।
सत्य का उजागर होना
पूर्व जन्म की कथा
रानी ईश्वरी ने भूषणा से पूछा कि उसके बच्चों को कोई नुकसान क्यों नहीं हो रहा। इस पर भूषणा ने जवाब दिया:
“आपको अपने पूर्व जन्म की बात याद नहीं है?”
भूषणा ने ईश्वरी को उनके पूर्व जन्म की कथा सुनाई और बताया कि व्रत भूलने के कारण वे दुःख भोग रही हैं।
व्रत का महत्व समझना
भूषणा की बात सुनकर रानी ईश्वरी ने भी ‘सन्तान सप्तमी व्रत’ किया। इसके प्रभाव से वह गर्भवती हुई और एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।
सन्तान सप्तमी व्रत का प्रभाव
इस व्रत के प्रभाव से सन्तान सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल वर्तमान जीवन में बल्कि पिछले जन्मों के दोषों को भी समाप्त करता है। व्रत की नियमितता और श्रद्धा से शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।
FAQs
1. सन्तान सप्तमी व्रत किसके लिए किया जाता है?
यह व्रत पुत्र प्राप्ति और सन्तान की रक्षा के लिए विशेष रूप से माताओं द्वारा किया जाता है।
2. व्रत का पालन कैसे करें?
व्रत में दिनभर उपवास करें, शिव-पार्वती की पूजा करें, कथा सुनें और सन्तान की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
3. सन्तान सप्तमी व्रत का महत्व क्या है?
इस व्रत से सन्तान की दीर्घायु और समृद्धि सुनिश्चित होती है। यह व्रत जीवन में सन्तान-सुख और शांति प्रदान करता है।
निष्कर्ष
सन्तान सप्तमी व्रत भारतीय संस्कृति में सन्तान सुख और सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्रत हमें शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
क्या आपने इस व्रत को कभी किया है? अपने अनुभव हमारे साथ साझा करें।
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