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पूजा विधियाँ, आरती मंत्र, व्रत त्यौहार

ऋषि पंचमी व्रत और पूजा विधि
व्रत / त्यौहार

ऋषि पंचमी व्रत: पापों की निवृत्ति और शुद्धि का पर्व

ऋषि पंचमी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला एक प्रमुख व्रत है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा पापों की निवृत्ति और शुद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत धर्म, तप और संस्कारों का प्रतीक है।


पूजा विधि-विधान

व्रत से पहले की तैयारी

  1. स्नान:
    • यदि गंगाजी में स्नान संभव हो तो वहाँ स्नान करें।
    • अन्यथा घर में स्नान करते समय जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
    • स्नान के दौरान 108 बार हाथ धोएं और 108 बार कुल्ला करें।
  2. शुद्धिकरण:
    • गोबर, तुलसी, पीपल, चंदन, तिल, आंवला, गंगाजल, और गोमूत्र को मिलाकर इससे हाथ और पैर धोएं।
    • स्नान के दौरान 108 पत्तों का उपयोग करें और घंटी बजाएं।
  3. नव वस्त्र धारण करें।

पूजा विधि

  1. गणेश पूजा:
    सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।
  2. ऋषियों की पूजा:
    सप्तऋषि (विश्वामित्र, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, जमदग्नि और गौतम) की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाएं और उनकी पूजा करें।
  3. भोग:
    केला, घी, चीनी, और फल भोग के रूप में अर्पित करें।
  4. बायना निकालना:
    पूजा के बाद केले के साथ घी, चीनी, और दक्षिणा रखकर बायना निकालें। इसे किसी ब्राह्मण या ब्राह्मणी को दान करें।
  5. व्रत नियम:
    • दिन में केवल एक बार भोजन करें।
    • हल से जोती हुई चीजें, अनाज, दूध, दही और चीनी का सेवन न करें।
    • केवल फल और मेवे ग्रहण करें।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

राजा सिताश्व का प्रश्न

एक बार राजा सिताश्व ने ब्रह्माजी से पूछा, “पितामह! कौन-सा व्रत सबसे श्रेष्ठ और तुरन्त फल देने वाला है?”

ब्रह्माजी का उत्तर

ब्रह्माजी ने कहा, “ऋषि पंचमी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है और यह पापों का विनाश करने वाला है।”

विदर्भ देश के ब्राह्मण उत्तंक की कथा

विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी सुशीला पतिव्रता और धार्मिक थीं। उनका एक पुत्र और एक पुत्री थी। विवाहोपरांत उनकी पुत्री विधवा हो गई। दुःखी होकर ब्राह्मण दम्पति अपनी पुत्री सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

पुत्री के पाप का कारण

उत्तंक को समाधि में ज्ञात हुआ कि उनकी पुत्री पूर्व जन्म में रजस्वला (मासिक धर्म के दौरान अपवित्र) होने पर भी बर्तनों को छू लेती थी। इस पाप के कारण उसके शरीर में कीड़े पड़ गए।

रजस्वला स्त्रियों के नियम

ब्रह्माजी ने समझाया:

  • पहले दिन: रजस्वला स्त्री चाण्डालिनी के समान अपवित्र होती है।
  • दूसरे दिन: वह ब्रह्मघातिनी के समान होती है।
  • तीसरे दिन: वह धोबिन के समान अपवित्र मानी जाती है।
  • चौथे दिन: स्नान करने पर वह शुद्ध होती है।
    यदि वह इस नियम का पालन न करे, तो उसे पाप का भागी बनना पड़ता है।

पुत्री को ऋषि पंचमी व्रत का निर्देश

उत्तंक ने अपनी पुत्री से कहा कि वह ऋषि पंचमी व्रत को विधिपूर्वक करे। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और दुखों से मुक्ति दिलाने वाला है।

व्रत का पालन और फल

पुत्री ने श्रद्धा और विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत किया।

अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य और अक्षय सुखों का भोग मिला।

व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई।


व्रत का महत्व

  1. पापों का नाश: यह व्रत मन, वचन और कर्म से किए गए सभी पापों का नाश करता है।
  2. शुद्धि का प्रतीक: रजस्वला के समय की अशुद्धता और उससे जुड़े दोषों को समाप्त करने का माध्यम है।
  3. सुख-समृद्धि: व्रत के प्रभाव से साधक को अगले जन्म में सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत आत्मिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है।

FAQs: ऋषि पंचमी व्रत

1. ऋषि पंचमी कौन कर सकता है?
यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन इसे पुरुष भी कर सकते हैं।

2. व्रत में किन चीजों का त्याग करना चाहिए?
हल से जोती हुई चीजें, अनाज, दूध, दही, और चीनी का सेवन नहीं करना चाहिए।

3. सप्तऋषि कौन हैं?
सप्तऋषि हैं: विश्वामित्र, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, जमदग्नि, और गौतम।

4. ऋषि पंचमी का व्रत क्यों किया जाता है?
यह व्रत पूर्व जन्म और इस जन्म के पापों की शुद्धि और मुक्ति के लिए किया जाता है।


ऋषि पंचमी व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और साधक को आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। 🌼


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