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रम्भा एकादशी
व्रत / त्यौहार

रम्भा एकादशी व्रत: कथा, महत्व और इसके अद्भुत लाभ क्या हैं?

रमा एकादशी या रम्भा एकादशी व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। व्रत के माध्यम से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से मुक्ति मिलती है और अंततः भक्त विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं। आइए इस व्रत की कथा, महत्व और विधि को विस्तार से समझते हैं।


रम्भा एकादशी का महत्व

इस व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।

  1. पापों से मुक्ति:
    रम्भा एकादशी व्रत करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
  2. विष्णु लोक की प्राप्ति:
    व्रतधारी अंततः भगवान विष्णु के लोक में स्थान पाते हैं।
  3. भक्तों के लिए आशीर्वाद:
    भगवान विष्णु का पूजन, नैवेद्य और आरती करने से भक्तों को समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिलता है।

रमा एकादशी या रम्भा एकादशी व्रत विधि

  1. पूजा की तैयारी:
    सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. भगवान कृष्ण की पूजा:
    भगवान कृष्ण की प्रतिमा को नए वस्त्र पहनाएं। फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य से पूजा करें।
  3. अन्न का त्याग:
    इस दिन अन्न ग्रहण न करें। फल और जल से दिन व्यतीत करें।
  4. ब्राह्मण भोजन और दान:
    पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
  5. रात्रि जागरण:
    रात्रि में भगवान के भजन और कीर्तन करें।

राजा मुचकुन्द (रम्भा एकादशी) की कथा

पुराने समय में मुचकुन्द नाम का दानी, धर्मात्मा राजा था। वह प्रत्येक एकादशी का व्रत करता था। राजा के चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी। वह भी एकादशी का व्रत करती थी।

उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ। शोभन राजा के साथ ही रहता था। इसलिए वह भी एकादशी का व्रत करने लगा। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शोभन ने एकादशी का व्रत रखा परन्तु भूख से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इससे राजा, रानी और पुत्री बहुत दुःखी हुए परन्तु एकादशी का व्रत करते रहे।

शोभन को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल पर्वत पर स्थित देव नगर में आवास मिला। वहाँ उसकी सेवा में रम्भादि अप्सराएँ तत्पर थीं। अचानक एक दिन मुचकुन्द मन्दराचल पर्वत पर गये तो वहाँ पर उन्होंने शोभन को देखा। घर आकर उन्होंने सब वृतान्त रानी एवं पुत्री को बताया। पुत्री यह समाचार पाकर पति के पास चली गई तथा दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। उनकी सेवा में रम्भादिक अप्सराएँ लगीं रहती थीं। इसलिए इस एकादशी को रम्भा एकादशी कहते हैं।


रम्भा एकादशी के अद्भुत लाभ

  • पापों से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि।
  • भगवान विष्णु का आशीर्वाद और विष्णु लोक की प्राप्ति।
  • जीवन में सुख-समृद्धि और शांति।
  • परिवार के लिए सौभाग्य और कल्याण।

FAQs

  1. रम्भा एकादशी का महत्व क्या है?
    यह व्रत पापों से मुक्ति और विष्णु लोक की प्राप्ति का मार्ग है।
  2. इस व्रत में क्या खाना चाहिए?
    इस दिन अन्न का त्याग करना चाहिए और केवल फल और जल ग्रहण करें।
  3. रम्भा एकादशी क्यों कहा जाता है?
    रम्भा नामक अप्सराएँ व्रतधारी को सेवा प्रदान करती हैं, इसलिए इसे रम्भा एकादशी कहते हैं।
  4. क्या यह व्रत सभी कर सकते हैं?
    हाँ, यह व्रत सभी आयु और वर्ग के लोग कर सकते हैं।

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