तिथि: श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी
महत्व: पुत्र प्राप्ति और परिवार की समृद्धि के लिए यह एकादशी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे “पुत्रदा” नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसका पालन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
Table of contents
व्रत विधि
- व्रत की तैयारी:
- प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक करें।
- दीप, धूप, चंदन, पुष्प, और तुलसी दल से पूजा करें।
- भजन और ध्यान:
- दिनभर भगवान विष्णु का ध्यान करें और भजन-कीर्तन गाएं।
- रात्रि जागरण:
- रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जागरण करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- दान और पारण:
- अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- वस्त्र, भोजन, दक्षिणा आदि दान करें।
पुत्रदा एकादशी कथा
प्राचीन काल में महिष्मति नगरी के राजा महाजित का जीवन संतान के अभाव में दुःखमय था। राजा धार्मिक, शांतिप्रिय और दानी थे, फिर भी उन्हें संतान सुख नहीं था।
एक दिन राजा ने नगर के ज्ञानी ऋषियों को बुलाकर संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। परमज्ञानी लोमेश ऋषि ने कहा:
“राजन, पिछले जन्म में आपने श्रावण मास की एकादशी के दिन एक प्यासी गाय को तालाब से पानी पीने से रोक दिया था। इस पाप के कारण आप निःसंतान हैं।”
ऋषि ने उपाय सुझाया:
“श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करें और रात्रि में जागरण करें। भगवान विष्णु की कृपा से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।”
राजा और रानी ने ऋषि की आज्ञा मानकर व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें एक तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
- संतान सुख: यह व्रत निःसंतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए अचूक माना गया है।
- पापों का नाश: व्रत से पिछले जन्मों के पापों का क्षय होता है।
- धार्मिक लाभ: भगवान विष्णु की पूजा और दान-पुण्य से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
FAQs
1. पुत्रदा एकादशी व्रत कौन कर सकता है?
सभी व्यक्ति, विशेषकर वे जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं।
2. व्रत के दौरान किन चीजों का त्याग करें?
लहसुन, प्याज, तामसिक भोजन, और क्रोध से बचना चाहिए।
3. क्या रात्रि जागरण करना आवश्यक है?
हां, रात्रि जागरण इस व्रत का एक महत्वपूर्ण अंग है।
4. इस व्रत का फल क्या है?
संतान सुख, पापों का नाश, और मोक्ष की प्राप्ति।
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