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मातृ नवमी का महत्व और पूजा विधि
व्रत / त्यौहार

मातृ नवमी: दिवंगत माताओं और सासों के लिए श्रद्धा का पर्व

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी मनाई जाती है। इस दिन का उद्देश्य दिवंगत माताओं और सासों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विशेष पूजा और तर्पण करना है। पितृपक्ष के दौरान जहाँ पुरुष अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं, वहीं मातृ नवमी के दिन गृहिणियाँ अपनी दिवंगत माताओं और सासों के लिए श्राद्ध करती हैं।


मातृ नवमी का महत्व

मातृ नवमी का महत्व भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। यह दिन दिवंगत माताओं और सासों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किए गए श्राद्ध, तर्पण, और दान से दिवंगत आत्माएँ प्रसन्न होती हैं, और वंश की उन्नति होती है।


मातृ नवमी पर पूजा विधि

  1. स्नान और शुद्धिकरण:
    प्रातः काल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। घर को पवित्र करें और पूजा स्थल तैयार करें।
  2. तर्पण और श्राद्ध विधि:
    • दिवंगत माताओं और सासों का स्मरण करें।
    • तर्पण के लिए जल, काले तिल, चावल, और गाय के दूध का उपयोग करें।
    • पवित्र कुशा (घास) का उपयोग करें।
  3. पिंडदान:
    गेहूँ के आटे, तिल और शहद से पिंड बनाएँ। इन्हें गंगाजल या पवित्र जल के साथ अर्पित करें।
  4. ब्राह्मणी को दान:
    • दिवंगत सास या माता की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणी (सुहागिन स्त्री) को भोजन कराएँ।
    • दान में वस्त्र, अन्न, दक्षिणा, और अन्य आवश्यक सामग्री दें।
  5. भोजन और प्रसाद:
    परिवार के सभी सदस्य सात्विक भोजन करें। भोजन में खीर, पूरी, और अन्य प्रिय व्यंजन बनाएँ।

मातृ नवमी की कथा

एक बार एक महिला ने अपने दिवंगत सास और माता के श्राद्ध के लिए मातृ नवमी का व्रत किया। उसने पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से ब्राह्मणी को भोजन कराया और उन्हें वस्त्र तथा दक्षिणा भेंट की। इस पुण्य कर्म से उसकी दिवंगत सास और माता प्रसन्न होकर स्वप्न में उसे आशीर्वाद देने आईं। उन्होंने कहा, “तुम्हारे इस पुण्य कार्य के कारण हमें मोक्ष की प्राप्ति हुई है। तुम्हारे वंश में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी।”

इस कथा से मातृ नवमी के व्रत और श्राद्ध का महत्व सिद्ध होता है।


मातृ नवमी के विशेष लाभ

  1. दिवंगत आत्माओं की शांति:
    इस दिन किए गए तर्पण और दान से दिवंगत माताओं और सासों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है।
  2. परिवार की समृद्धि:
    व्रत और दान करने से घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  3. पुण्य का अर्जन:
    इस दिन ब्राह्मणी को भोजन कराने और दान देने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।

FAQs

1. मातृ नवमी पर कौन-सा व्रत रखा जाता है?
मातृ नवमी पर दिवंगत माताओं और सासों की आत्मा की शांति के लिए व्रत रखा जाता है।

2. क्या मातृ नवमी केवल महिलाओं के लिए है?
जी हाँ, मातृ नवमी पर विशेष रूप से गृहिणियाँ पूजा और श्राद्ध करती हैं।

3. क्या मातृ नवमी पर ब्राह्मण भोजन कराना आवश्यक है?
मातृ नवमी पर ब्राह्मणी (सुहागिन स्त्री) को भोजन कराना और दान देना पुण्यदायी माना जाता है।


निष्कर्ष

मातृ नवमी भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो मातृत्व और सास के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन किए गए श्राद्ध, तर्पण, और दान से दिवंगत आत्माएँ प्रसन्न होती हैं और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है।

क्या आप मातृ नवमी का पालन करते हैं? अपने अनुभव साझा करें।


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