जीवित्पुत्रिका व्रत (जिसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है) आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। यह व्रत पुत्रवती महिलाओं द्वारा अपने पुत्रों की दीर्घायु और उनकी सुरक्षा के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से बच्चों के जीवन पर आने वाले संकट दूर हो जाते हैं और उनकी आयु में वृद्धि होती है।
Table of contents
पूजा विधि-विधान
- स्नान और शुद्धिकरण:
व्रती महिलाएं प्रातः स्नान कर शुद्ध होकर व्रत की तैयारी करती हैं। - भगवान सूर्य नारायण की पूजा:
- भगवान सूर्य की मूर्ति को स्नान कराएं और नवीन वस्त्र पहनाएं।
- बाजरा और चने से बने पदार्थ का भोग अर्पित करें।
- दीपक जलाकर धूप-दीप से आरती करें।
- निर्जल व्रत:
महिलाएं इस व्रत को निर्जल (बिना जल ग्रहण किए) रहकर करती हैं। - भोग और प्रसाद:
भोग में बाजरा और चने से बने पदार्थ रखें। काटे हुए फल और सब्जियां इस दिन वर्जित हैं। - व्रत कथा का श्रवण:
पूजा के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनना आवश्यक है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
ब्राह्मण और भगवान श्रीकृष्ण की कथा
एक समय की बात है कि जब भगवान कृष्ण द्वारिकापुरी में निवास करते थे, उस समय एक ब्राह्मण भी द्वारिका में रहता था। उसके सात पुत्र काल के गाल में बचपन में ही जा चुके थे। इस दशा को देखकर वह ब्राह्मण बहुत दुखी था।
एक दिन भगवान कृष्ण के पास गया और कहने लगा- हे भगवान ! आपके राज्य में आपकी कृपा से मेरे सात पुत्र हुए परन्तु जीवित कोई नहीं रहा, क्या कारण ? यदि आप अपने राज्य में दुःखी देखना नहीं चाहते तो कोई उपाय बताइये ।
भगवान श्रीकृष्ण का सुझाव:
तब भगवान बोले- हे ब्राह्मण ! सुनो, इस बार तुम्हारे जो पुत्र होगा उसकी उम्र तीन वर्ष की है। उसकी उम्र बढ़ाने के लिए तुम भगवान सूर्य नारायण की पूजा होने वाले पुत्रजीवी व्रत को धारण करो। तुम्हारे पुत्र की आयु बढ़ेगी।
सूर्य नारायण की कृपा:
ब्राह्मण ने वैसा ही किया। जब वह सपरिवार हाथ जोड़ और खड़े होकर इस प्रकार विनती कर ही रहा था- दोहा :-
सूर्यदेव विनती सुनो, पाऊँ दुक्ख अपार। उम्र बढ़ाओ पुत्र की, कहता बारम्बार।।
इतना सुनते ही सूर्य का रथ वहीं रुक गया। ब्राह्मण की विनती से प्रसन्न होकर सूर्य ने अपने गले से एक माला ब्राह्मण-पुत्र के गले में डाल दी और आगे चले गये।
यमराज का आगमन और सुदर्शन चक्र का प्रभाव:
थोड़ी ही देर में यमराज उस ब्राह्मण पुत्र के प्राण लेने के लिए आये, यमराज को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी कृष्णजी को झूठा कहने लगे। भगवान कृष्ण अपना अनादर जानकर तुरन्त सुदर्शन चक्र लेकर आ गये और बोले- इस माला को यमराज के ऊपर डाल दो। इतना कहते ही ब्राह्मण उस माला को उठाने लगा कि यमराज डर कर भाग गये परन्तु वहाँ यमराज की छाया खड़ी रही।
शनि का प्रकट होना:
उस फूल की माला को छाया के ऊपर फेंक दी, जिसके फलस्वरूप वह छाया शनि के रूप में आकर भगवान कृष्ण की प्रार्थना करने लगी। भगवान कृष्ण को शनि के ऊपर दया आ गई और उसे पीपल के वृक्ष पर रहने के लिए कहा। तब से शनि की छाया पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगी।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने उस ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ा दी। हे भगवान ! जिस तरह उस ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ाई है उसी तरह सबकी उम्र बढ़ाना।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
- पुत्रों की दीर्घायु और सुरक्षा:
यह व्रत उन माताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो अपने पुत्रों के जीवन और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। - मृतावस्था दोष का निवारण:
मान्यता है कि इस व्रत को करने से मृतावस्था (बच्चों का जन्म के बाद शीघ्र निधन) दोष समाप्त हो जाता है। - धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
यह व्रत न केवल संतान की रक्षा के लिए किया जाता है बल्कि पारिवारिक और सामाजिक सौहार्द्र को भी बढ़ावा देता है।
पूजा सामग्री
- भगवान सूर्य नारायण की मूर्ति
- बाजरा और चने से बने पदार्थ
- धूप, दीपक, चंदन, और फूल
- प्रसाद के लिए विशेष पकवान
- तांबे का लोटा (अर्घ्य के लिए)
FAQs: जीवित्पुत्रिका व्रत
1. जीवित्पुत्रिका व्रत कौन कर सकता है?
यह व्रत विशेष रूप से पुत्रवती महिलाएं करती हैं।
2. व्रत के दौरान क्या खा सकते हैं?
इस व्रत में निर्जल रहना चाहिए। भोजन या पानी ग्रहण नहीं किया जाता।
3. व्रत का क्या समय है?
यह व्रत आश्विन कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है।
4. जीवित्पुत्रिका व्रत में क्या चीजें वर्जित हैं?
काटे हुए फल, सब्जियां, और पेय पदार्थ वर्जित हैं।
5. इस व्रत की कथा क्यों सुननी चाहिए?
व्रत कथा सुनने से व्रती को व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
क्या आपने कभी जीवित्पुत्रिका व्रत किया है? अपने अनुभव और सवाल नीचे साझा करें!
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