आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी को इन्दिरा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी उन भटकती आत्माओं या पितरों को शांति और मोक्ष प्रदान करने के लिए विशेष मानी जाती है, जो मृत्यु के बाद भी गति प्राप्त नहीं कर पाते। इस व्रत का पालन न केवल पितरों के उद्धार के लिए किया जाता है, बल्कि इसे करने से स्वयं व्रतधारी को भी पुण्य लाभ मिलता है।
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इन्दिरा एकादशी का महत्व
इन्दिरा एकादशी का विशेष महत्व पितृ पक्ष के दौरान मनाए जाने के कारण और भी बढ़ जाता है। इसे करने से उन पितरों को गति प्राप्त होती है, जो किसी कारणवश अपने कर्मों के फलस्वरूप स्वर्ग नहीं जा सके। इस व्रत के प्रभाव से पितर संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। यह व्रत मोक्ष प्रदान करने और कुल-खानदान के उद्धार का माध्यम माना गया है।
पूजा विधि-विधान
1. शालिग्राम भगवान की पूजा
- इन्दिरा एकादशी को प्रातःकाल स्नान कर पवित्र होकर भगवान शालिग्राम की पूजा करनी चाहिए।
- शालिग्राम को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनाएं।
- तुलसी दल चढ़ाना अनिवार्य माना गया है।
2. भोग और आरती
- भगवान को भोग लगाएं और पूजा-अर्चना करें।
- तुलसी दल के साथ शालिग्राम पर पुष्प और अक्षत चढ़ाएं।
3. ब्राह्मण भोजन और दान
- पूजा के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- भोजन के साथ दक्षिणा और वस्त्र दान करने से पुण्य फल बढ़ता है।
4. व्रत का पालन
- इस दिन उपवास रखना चाहिए। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं।
- रात में भगवान विष्णु के नाम का स्मरण और कथा श्रवण करना चाहिए।
इन्दिरा एकादशी की पौराणिक कथा
राजा इन्द्रसेन की कथा
प्राचीन समय में माहिष्मती नगरी पर राजा इन्द्रसेन का शासन था। वह धर्मप्रिय और सत्यनिष्ठ राजा थे। एक दिन देवर्षि नारद राजा से मिलने उनके दरबार आए। नारद जी ने राजा से कहा, “हे राजन! मैं यमलोक गया था, वहां मैंने आपके पिता को बहुत ही कष्टमय स्थिति में देखा। वह भटकती आत्मा के रूप में दुःखी हैं। उन्होंने मुझे संदेश दिया कि तुम अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की इन्दिरा एकादशी का व्रत करो और इसका फल उन्हें अर्पित करो, ताकि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो।”राजा इन्द्रसेन ने नारद जी की आज्ञा का पालन करते हुए इन्दिरा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत के पुण्य को अपने पिता को समर्पित किया। इसके प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिली और वह स्वर्ग लोक चले गए।
नारद जी ने राजा को यह भी बताया कि जो कोई इस व्रत को विधिपूर्वक करेगा, उसके करोड़ों पितरों का उद्धार होगा।
इन्दिरा एकादशी से जुड़े लाभ
- पितरों को मोक्ष: इस व्रत के प्रभाव से भटकती आत्माओं को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
- पारिवारिक सुख: पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है।
- धन और वैभव: व्रतधारी के जीवन में धन, वैभव और सुख-समृद्धि आती है।
FAQs
1. इन्दिरा एकादशी कब मनाई जाती है?
इन्दिरा एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
2. क्या इस व्रत को सभी कर सकते हैं?
हां, इस व्रत को कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।
3. व्रत में क्या खाया जा सकता है?
उपवास में केवल फल, दूध और अन्य फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। अनाज और तामसिक भोजन से परहेज करें।
4. क्या व्रत के दिन कथा सुनना अनिवार्य है?
हां, इन्दिरा एकादशी की कथा सुनने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
निष्कर्ष
इन्दिरा एकादशी एक पवित्र व्रत है, जो न केवल पितरों के उद्धार का साधन है, बल्कि व्यक्ति के जीवन को भी सुख-समृद्धि से भर देता है। यदि आप भी इस व्रत का पालन करते हैं, तो अपने पितरों को मोक्ष दिलाकर उनके आशीर्वाद का अनुभव करें।
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