जानिए होली के पर्व से जुड़ी कथा, पूजा विधि और परंपराएँ। भक्त प्रह्लाद की भक्ति और होलिका दहन की धार्मिक मान्यता का महत्व।
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होली: रंगों का सामाजिक पर्व
होली, जिसे रंगों और आपसी प्रेम का त्यौहार माना जाता है, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस दिन लोग आपसी भेदभाव मिटाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और उत्सव मनाते हैं।
होली की परंपराएँ और पूजन विधि
होलिका दहन की तैयारी
- गोबर की गूलरियाँ बनाना:
होलिका दहन के 15-20 दिन पहले से कस्बों और गाँवों में गोबर से गूलरियाँ बनाई जाती हैं। इन्हें रस्सियों में पिरोकर माला बनाई जाती है। - लकड़ी और कंडों का संग्रह:
होलिका दहन के लिए लक्कड़-कंडे खुले मैदान में जमा किए जाते हैं।
होली पूजन विधि:
- प्रातःकाल की पूजा:
- स्नान के बाद हनुमानजी, भैरवजी और अन्य देवताओं की पूजा करें।
- पूजा सामग्री में जल, रोली, माला, चावल, फूल, गुलाल, नारियल आदि रखें।
- चौराहे पर भैरवजी का पूजन:
- एक ईंट पर तेल चढ़ाएं और बच्चों का हाथ लगाकर भैरवजी को अर्पित करें।
- उजमन की विधि:
- थाली में 13 स्थानों पर हलवा और पूड़ी रखें।
- सुपारी की 13 गोबर की माला बनाएं और श्रद्धा अनुसार कपड़े व रुपये रखें।
- सासुजी के पैर छूकर उजमन करें।
- होलिका दहन की पूजा:
- होलिका के पास जाकर जल, मोली, रोली, चावल, गुड़ आदि से पूजा करें।
- गोबर की माला, नारियल, पापड़ और कच्चे चने की डालियां चढ़ाएं।
- होली की परिक्रमा करें और सामग्री को भूनकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
होलिका दहन: भक्त प्रह्लाद की कथा
इस पर्व का सम्बन्ध भक्त प्रहलाद से है। भारत वर्ष में एक असुर हिरण्यकश्यप राज्य करता था उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था प्रहलाद भगवान का परम भक्त था परन्तु उसका पिता भगवान का अपना शत्रु मानता था इस कारण हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, पर वह उसे न मार सका। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने लकड़ियों के ढेर में आग लगवाई और प्रहलाद को होलिका की गोद में देकर अग्नि में प्रवेश करने की आज्ञा दी। होलिका ने अग्नि में प्रवेश किया परन्तु भगवान की कृपा से होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गया। तभी से होलिका का दहन किया जाता है।
होली पर्व के रीति-रिवाज
- रंगों का त्योहार:
होली के दूसरे दिन लोग गुलाल, पिचकारी और रंगों से एक-दूसरे को रंगते हैं। - पकवान:
- होली पर गुजिया, दही वड़ा, पापड़, पूड़ी और तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं।
- भगवान को भोग लगाने के बाद इन्हें प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
- गायन और नृत्य:
होली के दौरान लोकगीत, ढोलक, मजीरा और मृदंग की धुन पर लोग नृत्य और गान करते हैं। - परंपरागत गीत:
“जा सवरियां के संग, रंग में कैसे होली खेलूं री” जैसे पारंपरिक गीतों से उत्सव की रौनक बढ़ती है।
महिलाओं के लिए विशेष नियम
जिस लड़की का विवाह जिस साल हुआ हो, वह अपनी ससुराल की जलती हुई होली नहीं देखती। इसे शुभ माना जाता है।
होली का महत्व
- भाईचारे का पर्व:
होली जाति, धर्म और सामाजिक भेदभाव को मिटाकर लोगों को एक साथ लाती है। - आध्यात्मिक संदेश:
यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय और भगवान की कृपा का प्रतीक है। - परिवार और समाज के लिए:
होली का पर्व परिवार और समाज के बीच आपसी मेलजोल को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष: आपसी प्रेम और उल्लास का पर्व
होली न केवल रंगों का त्यौहार है, बल्कि यह आपसी प्रेम, भाईचारे और आध्यात्मिक महत्व को भी दर्शाता है। इस पर्व को मिल-जुलकर मनाने से समाज में एकता और सद्भावना बढ़ती है।
आपकी होली की परंपराओं में क्या खास है? नीचे कमेंट में हमें बताएं और इस लेख को शेयर करें।
FAQs: होली पर्व
1. होली का पर्व क्यों मनाया जाता है?
होली अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, जो भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ी है।
2. होलिका दहन का क्या महत्व है?
होलिका दहन बुराई के अंत और सत्य की विजय का प्रतीक है।
3. होली पर कौन-कौन से पकवान बनाए जाते हैं?
गुजिया, दही वड़ा, पूड़ी, हलवा, पापड़, और तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
4. क्या होली में भेदभाव मिटाने की परंपरा है?
हाँ, होली सभी सामाजिक भेदभाव को मिटाकर आपसी प्रेम का संदेश देती है।