हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा पति की दीर्घायु और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती के आदर्श विवाह के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
Table of contents
व्रत की पूजा विधि
आवश्यक सामग्री
- बालू या मिट्टी (शंकर-पार्वती और शिवलिंग की मूर्ति बनाने के लिए)
- सुहाग सामग्री (चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी)
- धोती और अगोछा (भगवान शिव के लिए)
- केले के स्तंभ (सजावट के लिए)
- तेरह प्रकार के मीठे व्यंजन
- धूप, दीप, रोली, चावल
विधि
- मूर्ति निर्माण:
बालू या मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और शिवलिंग की मूर्ति बनाएं। - व्रत पूजा:
- पूजा स्थल को केले के स्तंभों और फूलों से सजाएं।
- भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र और सुहाग सामग्री चढ़ाएं।
- तेरह प्रकार के मीठे व्यंजन बनाकर पूजा में समर्पित करें।
- पूजा के बाद यह सामग्री सासू माँ को बायना के रूप में अर्पित करें।
- रात्रि जागरण करें और भक्ति गीत गाएं।
- कथा सुनना:
- पूजा के बाद हरतालिका तीज व्रत की कथा सुनें।
- विशेष नियम:
- व्रत निर्जला रखा जाता है।
- रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन आवश्यक है।
व्रत कथा: शिव और पार्वती का पावन मिलन
शंकरजी द्वारा पार्वती को बताया गया प्रसंग
शंकरजी ने पार्वती से कहा कि एक बार तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा किनारे मुझे पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या प्रारम्भ की थी।
नारदजी का आगमन और प्रस्ताव
उस समय नारदजी हिमालय के पास आए और कहा कि भगवान विष्णु आपकी कन्या पार्वती के साथ विवाह करना चाहते हैं। नारदजी की इस बात को तुम्हारे पिता हिमालय ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद नारदजी विष्णु भगवान के पास गए और उन्हें यह प्रस्ताव दिया।
पार्वती का दुख और सखी का समर्थन
तुम्हारे पिता द्वारा विष्णु के साथ विवाह का प्रस्ताव सुनकर तुम अत्यंत दुखी हो गईं। जब तुम्हारी सखी ने दुख का कारण पूछा, तो तुमने उसे बताया कि तुम भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही हो, लेकिन तुम्हारे पिता विष्णु के साथ तुम्हारा विवाह तय कर रहे हैं।
सखी ने तुम्हें धीरज देते हुए कहा कि वह तुम्हें ऐसे वन में ले जाएगी, जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज न पाएं।
पार्वती का वनगमन और तपस्या
सखी की सहायता से तुम घने जंगल में चली गईं और एक गुफा में नदी के किनारे मेरे नाम पर कठिन तपस्या करने लगीं। भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को तुमने उपवास रखकर सिकता का शिवलिंग स्थापित किया, उसकी पूजा की और रात्रि जागरण भी किया।
शंकरजी का पार्वती को दर्शन देना
तुम्हारी कठिन तपस्या के कारण मुझे तुम्हारे पूजन स्थल पर आना पड़ा। तुम्हारी मांग के अनुसार मैंने तुम्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया और कैलाश पर्वत पर लौट आया।
हिमालय का खोज और विवाह
प्रातः काल जब तुम पूजन सामग्री नदी में प्रवाहित कर रही थीं, तब तुम्हारे पिता हिमालय वहां पहुंच गए। उन्होंने तुम्हें देखकर पूछा कि तुम यहां कैसे आईं। तुम्हारे उत्तर से सारी बात जानकर वे तुम्हें घर ले आए और शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ सम्पन्न हुआ।
हरितालिका व्रत का नामकरण
तुम्हारी सखी द्वारा तुम्हें हरी ले जाने के कारण इस व्रत का नाम हरितालिका व्रत पड़ा।
व्रत का महत्व
- अचल सुहाग: व्रत रखने वाली महिलाओं को माता पार्वती के समान अचल सुहाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- मनचाहा वर: कुंवारी कन्याओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है।
- वैवाहिक सुख: यह व्रत दांपत्य जीवन में प्रेम और समर्पण बढ़ाने वाला है।
FAQs: हरतालिका तीज
1. हरतालिका तीज व्रत कौन रख सकता है?
यह व्रत विवाहित और कुंवारी दोनों महिलाएं रख सकती हैं।
2. क्या व्रत में जल ग्रहण किया जा सकता है?
यह व्रत निर्जला रखा जाता है।
3. हरतालिका तीज का क्या महत्व है?
यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का प्रतीक है और इसे करने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि मिलती है।
4. इस दिन कौन-सी चीजें नहीं खानी चाहिए?
व्रत के दिन अनाज, नमक और तामसिक भोजन से बचना चाहिए।
हरतालिका तीज व्रत करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और समर्पण बढ़ता है। व्रत की पौराणिक कथा और पूजा विधि के अनुसार इसे मनाएं और अपने अनुभव साझा करें।
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