PoojaMarg.Com

पूजा विधियाँ, आरती मंत्र, व्रत त्यौहार

हल षष्टी (हर छठ)
व्रत / त्यौहार

हलषष्ठी (हर छठ), पूजा विधि-विधान, कथा और महत्व

तिथि: भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी
महत्व: यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है, इसीलिए उन्हें हलधर कहा जाता है और इस व्रत को हल षष्ठी कहते हैं। पूर्वी भारत में इसे ललई छठ के नाम से भी जाना जाता है।


पूजा विधि-विधान

  1. सफाई और तैयारी:
    • प्रातः स्नान करके घर और पूजा स्थान को साफ करें।
    • मिट्टी से छोटा तालाब बनाएं और उसमें झरबेरी, पलाश, और गूलर की शाखाओं को बाँधकर गाड़ें। इसे हर छठ कहा जाता है।
  2. पूजा सामग्री:
    • सतनजा (गेहूँ, चना, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ) का भुना हुआ लावा।
    • हल्दी में रंगे हुए वस्त्र।
    • सुहाग सामग्री (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि)।
  3. पूजन प्रक्रिया:
    • हर छठ की पूजा करें और सतनजा का भोग अर्पित करें।
    • निम्न मंत्र से प्रार्थना करें:

गंगाद्वारे पर कुशवते विल्व के नील पर्वते।
स्नात्या कनखले देवि हरंल्धवती पतिम्।।
ललिते सुभगे देवि सुख सौभाग्य दायिनी।
अनन्त देहि सौभाग्यं महां तुभ्यं नमो नमः।।

  • व्रत के नियम:
    • हल से जुताई किए गए अन्न और फल का उपयोग वर्जित है।
    • गाय के दूध-दही का उपयोग निषेध है। केवल भैंस के दूध और दही का उपयोग करें।

हल षष्टी कथा

प्राचीन काल में एक गर्भवती ग्वालिन को प्रसव पीड़ा हुई, लेकिन वह अपना दूध और मक्खन बेचने की चिंता में उसे सिर पर उठाकर बाजार चली गई। चलते-चलते वह झरबेरी की झाड़ी में जाकर बैठी और एक पुत्र को जन्म दिया। उसने बालक को वहीं छोड़कर अपना दूध और मक्खन बेचने निकल पड़ी।

उस दिन हर छठ का व्रत था, और ग्वालिन ने अपने दूध-दही को भैंस का बताकर बेचा, जबकि वह गाय और भैंस दोनों का मिश्रित था।

जहाँ उसने अपने बच्चे को छोड़ा था, वहाँ एक किसान हल चला रहा था। हल की नोक बच्चे के पेट से टकरा गई, जिससे बच्चा मर गया। किसान ने बच्चे के पेट में झरबेरी के काँटों से टाँके लगाकर छोड़ दिया।

जब ग्वालिन ने बच्चे को मृत पाया, तो उसे अपने झूठ और पाप का बोध हुआ। उसने गली-गली जाकर सबको सच बता दिया और प्रायश्चित के लिए क्षमा माँगी। व्रत रखने वाली स्त्रियों ने उसकी सच्चाई सुनकर उसे आशीर्वाद दिया।

जब ग्वालिन वापस अपने बच्चे के पास पहुँची, तो उसने पाया कि बच्चा जीवित हो चुका है। उस दिन से ग्वालिन ने कभी झूठ न बोलने और धर्म का पालन करने का प्रण लिया।


हल षष्टी व्रत का महत्व

  1. बलराम जी की पूजा: इस दिन बलराम जी की पूजा करने से शारीरिक बल, संतान, और समृद्धि प्राप्त होती है।
  2. सतनजा का भोग: यह भोग प्रकृति और अन्न के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
  3. सच्चाई का महत्व: इस व्रत की कथा झूठ से बचने और सच्चाई का पालन करने का संदेश देती है।

FAQs: हल षष्टी (हर छठ)

1. हल षष्टी व्रत कब मनाया जाता है?
हल षष्टी व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह दिन भगवान बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

2. हल षष्टी व्रत का क्या महत्व है?
हल षष्टी व्रत भगवान बलराम जी की पूजा करने के लिए किया जाता है, जो शारीरिक बल, समृद्धि और संतान की प्राप्ति का कारण माना जाता है। यह व्रत सत्य बोलने और पाप से मुक्ति पाने का संदेश भी देता है।

3. हल षष्टी व्रत में क्या नियम होते हैं?
इस दिन गाय के दूध और दही का उपयोग नहीं करना चाहिए। केवल भैंस के दूध और दही का ही उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, हल से जुताई किए गए अन्न और फल का भी सेवन वर्जित होता है।

भैंस का बताया। उसके बाद उसके बच्चे का पेट हल से कट जाता है, लेकिन जब उसने सच्चाई बताई, तो उसका बच्चा जीवित हो गया।

4. हल षष्टी व्रत करने से क्या लाभ होता है?
इस व्रत को करने से व्यक्ति को बलराम जी की कृपा मिलती है, संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है। साथ ही यह व्रत सत्य बोलने और पाप से मुक्ति का भी कारण बनता है।

5. हल षष्टी में कौन से विशेष आहार वर्जित होते हैं?
इस दिन हल से जुताई किए गए अन्न और फल का सेवन वर्जित होता है। गाय के दूध और दही का उपयोग भी नहीं करना चाहिए। केवल भैंस के दूध और दही का प्रयोग किया जाता है।

6. हल षष्टी व्रत में क्या पूजा सामग्री चाहिए होती है?
पूजा में सतनजा (गेहूँ, चना, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ), हल्दी में रंगा हुआ वस्त्र, सुहाग सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी आदि) और भैंस के दूध से तैयार सामग्री चढ़ाई जाती है।


Discover more from PoojaMarg.Com

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

error: Content is protected !!