गणेश चतुर्थी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक है और इसे विशेष श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी भारत के सभी हिस्सों में मनाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इसका विशेष महत्व है।
Table of contents
पूजा विधि-विधान
आवश्यक सामग्री
- गणेश की मूर्ति (सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी या गोबर से निर्मित)
- इक्कीस मोदक (लड्डू)
- हरित दुर्वा के इक्कीस अंकुर
- धूप, दीप, रोली, चावल
- नारियल, फूल, कलश
विधि
- मूर्ति स्थापना:
प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर, शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। - पूजा आरंभ:
- गणेश जी को जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
- रोली, चावल और फूल चढ़ाएं।
- हरित दुर्वा के इक्कीस अंकुर, भगवान गणेश के दस नामों का उच्चारण करते हुए चढ़ाएं:
- गताधिपः
- गौरी सुमन
- अघनाशक
- एकदन्तं
- ईशपुत्र
- सर्वसिद्धिप्रद
- विनायक भगवन्त
- कुमार गुरु
- इंभवक्त्राय
- मूषक-वाहन संत
- भोग अर्पण:
- गणेश जी को इक्कीस मोदकों का भोग लगाएं।
- इनमें से दस मोदक ब्राह्मणों को दान दें और ग्यारह मोदक स्वयं ग्रहण करें।
- आरती और कथा:
- पूजा के बाद भगवान गणेश की आरती करें।
- गणेश चतुर्थी की कथा का श्रवण करें।
- विशेष नियम:
- इस दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि चंद्र दर्शन अपशकुन माना जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेशजी का निर्माण
एक बार भगवान शंकर स्नान के लिए भोगवती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने मैल से एक पुतला बनाया और उसे सजीव कर दिया। इस पुतले का नाम उन्होंने गणेश रखा।
गणेशजी को द्वारपाल बनाना
पार्वतीजी ने गणेश से कहा, “जब तक मैं स्नान कर रही हूँ, तब तक किसी भी पुरुष को अन्दर मत आने देना।” गणेशजी माता के आदेश का पालन करने द्वार पर बैठ गए।
भगवान शंकर और गणेशजी का विवाद
स्नान के बाद भगवान शंकर जब भोगवती से लौटे तो उन्होंने अन्दर जाने की कोशिश की। गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक दिया। इससे भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
पार्वतीजी का दु:ख
भगवान शंकर अन्दर चले गए और पार्वतीजी को भोजन के लिए बुलाया। पार्वतीजी ने दो थाल में भोजन परोसा। शंकरजी ने आश्चर्य से पूछा, “दूसरा थाल किसके लिए है?”
पार्वतीजी ने बताया, “यह थाल हमारे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर पहरा दे रहा है।” शंकरजी ने कहा, “मैंने उसका सिर काट दिया है।” यह सुनकर पार्वतीजी अत्यंत दुःखी हो गईं और अपने प्रिय पुत्र को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगीं।
गणेशजी को पुनर्जीवन
पार्वतीजी की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने एक तुरन्त जन्मे हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेशजी के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार गणेशजी पुनः जीवित हो गए।
व्रत का महत्व
- संकटों का नाश: गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
- विघ्न-विनाशक: भगवान गणेश को विघ्नों का नाशक माना जाता है।
- सिद्धि और समृद्धि: इस दिन पूजा करने से समृद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुख-शांति: इस दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर पूजा करते हैं, जिससे आपसी प्रेम बढ़ता है।
FAQs: गणेश चतुर्थी
1. गणेश चतुर्थी का पर्व कितने दिनों तक चलता है?
गणेश चतुर्थी का उत्सव दस दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन होता है।
2. गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा क्यों नहीं देखना चाहिए?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा के दर्शन से मिथ्या दोष लगता है। इस दिन चंद्र दर्शन करने से किसी झूठे आरोप का सामना करना पड़ सकता है।
3. क्या गणेश चतुर्थी पर व्रत रखा जाता है?
हाँ, भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान गणेश की पूजा में लीन रहते हैं।
4. गणेश विसर्जन का क्या महत्व है?
गणेश विसर्जन भगवान गणेश को प्रतीकात्मक रूप से उनके दिव्य लोक में वापस भेजने का संकेत है।
गणेश चतुर्थी का पर्व सभी भक्तों के लिए शुभ और मंगलकारी है। भगवान गणेश की पूजा और कथा का श्रवण करने से सभी विघ्नों का नाश होता है। गणपति बप्पा मोरया!
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