गाज माता का व्रत भाद्रपद माह में किया जाता है, विशेष रूप से जब किसी के घर पुत्र का जन्म हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो। यह व्रत गाज माता की पूजा के रूप में सम्पन्न होता है और इसके साथ उजमन का आयोजन किया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य गाज माता की कृपा प्राप्त करना है, ताकि घर में सुख-शांति, समृद्धि, और संतान सुख मिले।
गाज का व्रत की पूजा विधि
चरणबद्ध प्रक्रिया:
- सात स्थानों पर पूजा सामग्री रखना:
पहले सात स्थानों पर चार-चार पूड़ी और हलवा रखकर उन पर कपड़ा और रुपये रख दें। - सात दाने गेहूँ के हाथ में लेना:
एक जल के लोटे पर सतिया बनाकर उसमें सात दाने गेहूँ के हाथ में लेकर गाज की कहानी सुनें। यह एक महत्वपूर्ण रस्म है जो व्रत का अनुष्ठान करती है। - सासुजी को पूड़ी देना:
सारी पूड़ियाँ ओढ़नी पर रखकर सासुजी के पैर छूकर उन्हें दे दें। यह कृत्य सम्मान का प्रतीक है। - सूर्य को अर्घ्य देना:
बाद में लोटे के जल से सूर्य भगवान को अर्घ्य दें। यह सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने का तरीका है। - ब्राह्मणियों को भोजन कराना:
फिर सात ब्राह्मणियों को भोजन कराकर दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भी भोजन करें। यह व्रत का अंतिम चरण है और इसे विधिपूर्वक करना चाहिए।
गाज का व्रत की कथा
कथा का सारांश:
प्राचीन समय में एक राजा और रानी थे जिनके पास संतान नहीं थी। राजा और रानी संतान के न होने से बहुत दुखी थे। रानी ने गाज माता से प्रार्थना की थी कि यदि वह गर्भवती हो जाएं, तो वे गाज माता की हलवे की कड़ाही करेंगे। इसके बाद रानी गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया।
लेकिन रानी ने गाज माता की कड़ाही करना भूल गई। इससे गाज माता क्रोधित हो गईं और एक दिन रानी का बेटा पालने में सोते हुए आँधी के साथ उड़कर एक भील-भीलनी के घर पहुँच गया। भील-भीलनी के पास कोई संतान नहीं थी, तो उन्होंने लड़के को भगवान का प्रसाद समझकर अपनाया।
जब राजा और भील दम्पत्ति के बीच संवाद हुआ, तो उन्होंने गाज माता के व्रत को माना और रानी को अपनी भूल का अहसास हुआ। रानी ने गाज माता से प्रार्थना की और उनके द्वारा कड़ाही बनाई। इसके बाद गाज माता ने रानी का बेटा लौटा दिया और भील-भीलनी को भी धन और पुत्र का आशीर्वाद दिया।
गाज का व्रत का महत्व
- संतान सुख:
यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि किसी के घर संतान न हो, तो इस व्रत के द्वारा वह संतान प्राप्त कर सकता है। - समृद्धि और सुख:
गाज माता की पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। - सामाजिक सम्मान:
इस व्रत को सही तरीके से करने से सामाजिक सम्मान और पारिवारिक सौहार्द बढ़ता है।
FAQs
1. गाज का व्रत कब किया जाता है?
गाज का व्रत भाद्रपद माह में किया जाता है, खासकर जब घर में पुत्र का जन्म हुआ हो या विवाह हुआ हो।
2. गाज का व्रत किसके लिए विशेष रूप से किया जाता है?
यह व्रत मुख्य रूप से संतान सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है।
3. क्या इस व्रत को घर में भी किया जा सकता है?
हाँ, इस व्रत को घर में भी किया जा सकता है, लेकिन पूजा विधि और पूजा सामग्री का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
गाज का व्रत संतान सुख की प्राप्ति और घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक और सच्चे मन से किया जाता है तो व्यक्ति को संतान सुख, धन और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। गाज माता की कृपा से जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है।
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