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दुबड़ी सातें
व्रत / त्यौहार

दुबड़ी सातें: पूजा विधि, कथा, और महत्त्व

दुबड़ी सातें भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पारिवारिक संबंधों को प्रगाढ़ करने और बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करने का भी दिन है।


दुबड़ी सातें की पूजा विधि

इस दिन पूजा-विधान को पूरी निष्ठा और विधि-विधान के साथ संपन्न करना आवश्यक है।

पूजा सामग्री

  • मिट्टी
  • जल
  • दूध
  • रोली और चावल
  • बाजरे का आटा, घी, चीनी से बने लड्डू
  • दक्षिणा, मोठ, और बाजरा

पूजा का तरीका

  1. एक पट्टे पर मिट्टी से दुबड़ी मांडें।
  2. जल, दूध, रोली, और चावल चढ़ाएं।
  3. बाजरे के लड्डू बनाकर अर्पित करें।
  4. मोठ और बाजरा चढ़ाकर बायना निकालें।
  5. सास के पैर छूकर बायना दें।
  6. बेटी को भी बायना भेजें।
  7. दुबड़ी सातें की कथा सुनें और अपनी परंपराओं को संजोएं।

दुबड़ी सातें की कथा

एक साहूकार की कहानी: दुबड़ी सातें की महिमा

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार था। उसके सात बेटे थे। लेकिन उसकी जिंदगी में एक विचित्र समस्या थी। जब भी वह अपने किसी बेटे का विवाह तय करता और विवाह के दिन करीब आते, तो वही बेटा किसी न किसी दुर्घटना में मारा जाता। इसी प्रकार साहूकार के छह बेटे एक-एक करके मृत्यु को प्राप्त हो गए। अब केवल उसका सबसे छोटा बेटा जीवित बचा था।

छोटे बेटे का विवाह तय होना

साहूकार के घर में खुशी और चिंता का माहौल था। सबसे छोटे बेटे का विवाह तय हो गया था। रिश्तेदारों को न्यौते भेजे जा चुके थे, और तैयारियां जोरों पर थीं। लेकिन इस बार परिवार के मन में एक अजीब डर था।

बुआ की मुलाकात बुढ़िया से

शादी के दिन से कुछ समय पहले, साहूकार के बेटे की बुआ विवाह के लिए घर जा रही थीं। रास्ते में उनकी मुलाकात एक बूढ़ी औरत से हुई। वह औरत चक्की से आटा पीस रही थी। बुआ ने उससे बात करने के लिए रुक गईं।

बुढ़िया ने बुआ से पूछा, “बेटी, तू कहां जा रही है?”
बुआ ने कहा, “मैं अपने भतीजे के विवाह में जा रही हूं।”

बुढ़िया ने चिंता भरी आवाज में कहा, “बेटी, सुन! तेरा भतीजा घर से बाहर निकलते ही घर के दरवाजे के नीचे दबकर मर जाएगा। अगर वह बच गया, तो रास्ते में बारात जिस पेड़ के नीचे रुकेगी, वह पेड़ गिर जाएगा। अगर वहाँ से भी बच गया, तो ससुराल में दरवाजे के नीचे दबकर मर जाएगा। और अगर वहां भी न मरा, तो सातवें भाँवर पर सर्प आकर उसे डस लेगा।”

यह सुनकर बुआ घबरा गईं। उन्होंने पूछा, “माँ, क्या इसे बचाने का कोई उपाय है?”
बुढ़िया बोली, “हां, उपाय है। लेकिन यह आसान नहीं है। सुनो:

  1. लड़के को घर के पीछे की दीवार फोड़कर बाहर निकालना।
  2. बारात को पेड़ के नीचे रुकने नहीं देना।
  3. ससुराल में भी उसे पीछे के दरवाजे से घर में प्रवेश कराना।
  4. भाँवरों के समय कच्चे दूध से भरा कटोरा और तांत का फांसा तैयार रखना।
  5. जब सातवें भाँवर पर साँप आए, तो उसे दूध पिलाकर तांत से बांध देना।
  6. साँप के बाद साँपिन आएगी। वह साँप मांगेगी। तब उससे अपने छह भतीजों की जिंदगी मांग लेना।”

बुढ़िया ने यह भी चेतावनी दी, “इस बात को किसी को मत बताना। अगर यह बात किसी ने सुन ली, तो सुनाने वाला और सुनने वाला दोनों की मृत्यु हो जाएगी।”
इतना कहकर बुढ़िया चली गई। उसने जाते-जाते अपना नाम बताया, “मेरा नाम दुबड़ी है।”

बुआ की सतर्कता और उपाय

बुआ यह सब सुनकर सीधे घर आईं। जब बारात जाने लगी, तो बुआ ने घर के मुख्य दरवाजे से बारात ले जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि लड़के को पीछे की दीवार फोड़कर बाहर निकाला जाए। परिवार के लोगों ने उनकी बात मानी। जैसे ही लड़का पीछे के दरवाजे से बाहर निकला, घर का मुख्य दरवाजा गिर गया। सबने बुआ की प्रशंसा की।

रास्ते में बारात एक बड़े पेड़ के नीचे रुकने वाली थी। लेकिन बुआ ने मना कर दिया और दूल्हे को धूप में बैठने को कहा। जैसे ही दूल्हा धूप में बैठा, वह पेड़ गिर गया। यह देखकर सभी लोग बुआ के समझदारी की तारीफ करने लगे।

जब बारात ससुराल पहुंची, तो बुआ ने फिर से पीछे के दरवाजे से प्रवेश करने की सलाह दी। जैसे ही दूल्हा पीछे के दरवाजे से अंदर गया, मुख्य दरवाजा गिर गया।

सातवें भाँवर और साँप का आगमन

भाँवरों का समय आया। बुआ ने पहले ही कच्चे दूध का कटोरा मंगवाया और तांत का फांसा तैयार रखा। जब सातवीं भाँवर पर साँप आया, तो बुआ ने उसे दूध पिला दिया और तांत से बांध दिया।

कुछ समय बाद साँपिन आई। उसने गुस्से में कहा, “मेरा साँप वापस कर दो।”
बुआ ने जवाब दिया, “मैं तुम्हें तुम्हारा साँप तभी दूंगी, जब तुम मेरे छह भतीजों को वापस जीवित कर दोगी।”

साँपिन ने बुआ की बात मान ली और उसके छह भतीजों को जीवित कर दिया। इसके बाद साँप और साँपिन वहां से चले गए।

दुबड़ी सातें की पूजा

साहूकार का परिवार खुशी से भर गया। सातों भतीजे जीवित हो गए और विवाह भी सकुशल संपन्न हो गया। घर लौटने के बाद बुआ ने सप्तमी के दिन दुबड़ी मैया की पूजा कराई। तभी से इस पूजा को “दुबड़ी सातें” कहा जाने लगा।

कहानी का संदेश

यह कहानी न केवल साहस और सतर्कता की मिसाल है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कठिन समय में सही मार्गदर्शन और सावधानी से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान संभव है। दुबड़ी मैया की कृपा से साहूकार का परिवार पुनः एकजुट हो गया।

हे दुबड़ी मैया, जैसे तूने बुआ को सातों भतीजे दिए, वैसे सबका भला करना।तः सातवें फेरे पर साँप को दूध पिलाकर तांत से बांधा और साँपिन से अपने छह भतीजों को पुनर्जीवित करवाया।


दुबड़ी सातें का महत्व

पारिवारिक एकता का प्रतीक

यह त्योहार पारिवारिक संबंधों को मजबूत करता है। सास और बहू के संबंधों में मिठास लाने के लिए विशेष रीति-रिवाज किए जाते हैं।

संकटों से रक्षा की प्रेरणा

दुबड़ी की कथा जीवन में आने वाले संकटों से लड़ने और धैर्य बनाए रखने की प्रेरणा देती है।


FAQs:

1. दुबड़ी सातें क्यों मनाई जाती है?

दुबड़ी सातें संकटों से मुक्ति और पारिवारिक कल्याण के लिए मनाई जाती है।

2. पूजा में किन चीजों का उपयोग होता है?

मिट्टी, जल, दूध, रोली, चावल, और बाजरे के आटे से बने लड्डू पूजा में उपयोग किए जाते हैं।

3. दुबड़ी सातें की कथा का संदेश क्या है?

कथा संकटों से निपटने के लिए धैर्य और बुद्धिमानी का महत्व सिखाती है।


निष्कर्ष

दुबड़ी सातें हमारी परंपराओं और परिवारिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने वाला त्योहार है। इस पर्व को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाएं। अगर यह जानकारी उपयोगी लगी, तो कृपया अपने विचार और अनुभव साझा करें। आपके सुझाव और टिप्पणियां हमारी प्रेरणा हैं!


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