चना छट जिसे चंद्र षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं और नवविवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और परिवार के लिए शांति की कामना करना है।
Table of contents
चंद्र षष्ठी व्रत की पूजा विधि
- पूजा स्थान तैयार करें
- एक साफ पट्टे पर जल का लोटा रखें।
- लोटे पर सतिया (स्वस्तिक चिह्न) बनाएं और किनारों पर सात बिंदियां लगाएं।
- पूजा सामग्री का उपयोग
- एक थाली में गेहूं और रुपये रखें।
- गेहूं के सात दाने हाथ में लें और व्रत की कथा सुनें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देना
- शाम के समय चंद्रमा को जल अर्पित करें।
- पूजा के बाद गेहूं और रुपये ब्राह्मणी को दान दें।
चंद्र षष्ठी की कथा
एक साहूकार और साहूकारनी थे। साहूकारनी मासिक धर्म के समय भी बर्तनों को स्पर्श करती थी। थोड़े दिन बाद दोनों मर गए। मरने के बाद साहूकार बैल की योनि में गया। साहूकारनी कुतिया की योनि में गई। दोनों अपने लड़के के घर में रहने लगे। बैल सारे दिन-रात काम करता और कुतिया घर की रखवाली करती थी।
एक दिन उसके पिता का श्राद्ध आया तब उसने खीर बनाई। वह तो दूसरे काम में लग गई तब एक चील आई और सारी खीर में सांप डाल गयी। यह सब कुतिया देख रही थी तो उसने सोचा कि जब ब्राह्मण खाएगा तो वह मर जायेगा। परन्तु मेरी बहू ने तो देखा नहीं है तब वह कुतिया चिल्लाई तो बहू देखने लगी तो कुतिया ने खीर में मुंह दे दिया। तब बहू ने कुतिया के जलती हुई लड़की मार दी और उसकी कमर की हड्डी टूट गई। तब बहू ने वह खीर फेंक दी और दूसरी रसोई बनाई। सब ब्राह्मण खाना खाकर चले गए तो गुस्से में बहू ने वह खीर भी कुत्तिया को नहीं दी।
रात को कुतिया और बैल बात करने लगे। तब कुतिया बोली आज तो तुम्हारा श्राद्ध था जिससे तुम्हें तो खाने को मिल गया लेकिन मुझे तो कुछ भी नहीं मिला और बैल को सारी बात बता दी। तब बैल बोला कि आज तो मुझे कुछ खाने को नहीं मिला और काम भी बहुत कराया। उधर बेटे बहू सारी बात सुन रहे थे।
दूसरे दिन पण्डित को बुलाया और पूछा हमारे मां-बाप कौन सी योनि में हैं। तब पण्डित बोला कि पिता तो बैल की योनि में है और माँ कुतिया की योनि में है। तब उन्होंने अपने मां-बाप को पेट भर कर खिलाया और पण्डित से पूछा कि हमारे मां बाप की योनि कैसे छूटेगी। तब पण्डित बोला कि भादों की छठ को लड़कियां चना छठ का व्रत करती हैं और चांद को जल देती हैं। कहानी सुनकर जब वह चांद को जल देंवे तब उन्हें नीचे खड़ा करें जिससे उनकी योनि छूट जाएगी। तब लड़कियों ने अरक दिया और उनकी यह योनि छूट गई और मोक्ष को प्राप्त हो गए। बाद में मनुष्य की योनि मिल गई। इस कहानी को जो पढ़ता व सुनता है उन्हें भगवान की कृपा से मुक्ति प्राप्ति होती है।
मोक्ष की प्राप्ति
कुंवारी कन्याओं और नवविवाहिताओं ने चना छट व्रत रखकर चंद्रमा को जल अर्पित किया। इस व्रत के प्रभाव से साहूकार और साहूकारनी की योनि छूट गई, और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
व्रत का धार्मिक महत्व
चंद्र षष्ठी व्रत न केवल पापों के नाश के लिए किया जाता है, बल्कि यह परिवार में शांति और समृद्धि लाने का माध्यम भी है। चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा हमारी पौराणिक कथाओं में मानसिक शांति और सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है।
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FAQs
1. चंद्र षष्ठी व्रत कौन कर सकता है?
यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं और नवविवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है।
2. चंद्र षष्ठी का महत्व क्या है?
यह व्रत परिवार के कल्याण और पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है।
3. व्रत के दौरान कौन-कौन सी सामग्री आवश्यक है?
लोटा, जल, गेहूं, रुपये, और स्वस्तिक बनाने के लिए कुमकुम।
4. चंद्र षष्ठी व्रत कब मनाया जाता है?
यह भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
5. इस व्रत की पूजा विधि में क्या विशेष है?
इसमें चंद्रमा को जल अर्पित करना और ब्राह्मणी को दान देना मुख्य है।
निष्कर्ष
चंद्र षष्ठी या चना छट का व्रत हमारी पौराणिक परंपराओं और धार्मिक विश्वासों का प्रतीक है। यह व्रत हमें सिखाता है कि पवित्रता, श्रद्धा, और दान से जीवन के पापों का नाश संभव है।
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