वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरूथनी एकादशी मनाई जाती है। इस व्रत को हिंदू धर्म में अत्यंत फलदायक माना गया है। यह व्रत न केवल व्यक्ति के जीवन में सुख और सौभाग्य लाता है, बल्कि पापों का नाश भी करता है। इसके महत्व और कथा से प्रेरित होकर लोग इसे श्रद्धापूर्वक करते हैं।
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बरूथनी एकादशी का महत्व
बरूथनी एकादशी का व्रत इतना प्रभावशाली है कि इसके पुण्य का वर्णन करोड़ों वर्षों तक तपस्या करने या कन्यादान के पुण्य से भी अधिक है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के महात्म्य को सुनने मात्र से सहस्त्र गऊओं की हत्या का दोष नष्ट हो जाता है। यह व्रत व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि, सुख-समृद्धि और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
व्रत विधि और नियम
व्रत के नियम
- व्रत के दिन भोजन में तेल युक्त चीजें न खाएं।
- परनिंदा, क्रोध और असत्य बोलने से बचें।
- सुपात्र ब्राह्मण को दान दें।
- भगवान विष्णु की पूजा में पूर्ण श्रद्धा और समर्पण रखें।
पूजा विधि
- सुबह स्नान कर भगवान विष्णु के बाराह अवतार की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।
- दीपक जलाएं, फूल, अक्षत और तिल अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- व्रत की कथा सुनें और परिवार में साझा करें।
बरूथनी एकादशी व्रत कथा
राजा मांधाता की कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक एक दानशील और तपस्वी राजा राज्य करता था। वह भगवान विष्णु का भक्त था और राजकाज करते हुए भी तपस्या में लीन रहता था।
एक दिन जब राजा तपस्या कर रहा था, तब एक जंगली भालू आया और उसका पैर चबाने लगा। भालू राजा को घसीट कर वन में ले गया। बावजूद इसके, राजा ने हिंसा, क्रोध और प्रतिशोध से दूर रहते हुए भगवान विष्णु की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु भक्त की पुकार सुनकर प्रकट हुए और भालू को अपने चक्र से मार डाला। भालू ने राजा का पैर खा लिया था, जिससे वह अत्यंत शोक में था। भगवान विष्णु ने राजा को मथुरा जाकर अपने बाराह अवतार की पूजा और बरूथनी एकादशी व्रत का पालन करने का आदेश दिया।
राजा ने व्रत पूरी श्रद्धा से किया और इसके प्रभाव से उसके अंग पुनः सुंदर और स्वस्थ हो गए। भगवान विष्णु ने उसे बताया कि भालू के हमले का कारण उसके पूर्वजन्म के पाप थे, जो इस व्रत के प्रभाव से समाप्त हो गए।
बरूथनी एकादशी का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
बरूथनी एकादशी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं है; यह व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण, सत्य, और दानशीलता का संदेश देता है। यह व्रत जीवन में संयम और शांति बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
इस व्रत का सामाजिक संदेश भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दूसरों के प्रति दया, प्रेम, और सहयोग को बढ़ावा देता है। दान और धर्म का महत्व इसके केंद्र में है।
निष्कर्ष
बरूथनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन के कष्टों को दूर करने का एक अद्भुत माध्यम है। इसकी कथा हमें सिखाती है कि समर्पण और विश्वास से हम अपने जीवन के बड़े से बड़े संकटों का समाधान पा सकते हैं।
यदि यह जानकारी आपको उपयोगी लगी, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें। क्या आपने भी इस व्रत का पालन किया है? हमें अपनी राय और अनुभव कमेंट सेक्शन में बताएं।
FAQs: बरूथनी एकादशी
1. बरूथनी एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है?
इस व्रत को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और पापों के नाश के लिए किया जाता है।
2. व्रत के दौरान कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं?
व्रत के दिन तेल युक्त भोजन, परनिंदा, क्रोध, और असत्य बोलना वर्जित है।
3. क्या बरूथनी एकादशी का व्रत सभी कर सकते हैं?
हां, इस व्रत को सभी जाति और वर्ग के लोग कर सकते हैं, बशर्ते वे श्रद्धा और नियमों का पालन करें।
4. बरूथनी एकादशी का फल क्या है?
इस व्रत का फल कन्यादान और करोड़ों वर्षों की तपस्या के फल से भी अधिक माना गया है।
5. इस व्रत का आध्यात्मिक संदेश क्या है?
यह व्रत संयम, शांति, और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है।
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