PoojaMarg.Com

पूजा विधियाँ, आरती मंत्र, व्रत त्यौहार

आशा भगोती व्रत
व्रत / त्यौहार

आशा भगोती व्रत: क्या है और कैसे करें? विधि विधान और कथा

आशा भगोती व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर आठ दिनों तक चलता है। यह व्रत कुंवारी लड़कियों द्वारा अपने जीवन में सुख-समृद्धि, उत्तम वर, और भविष्य में सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए किया जाता है। व्रत का अंतिम दिन “उजमन” का दिन होता है, जब विधि-विधान से पूजा की जाती है।


पूजा विधि-विधान

  1. रसोई की तैयारी:
    गोबर से आठ कोने रसोई के पोतें और हर कोने पर पूजा सामग्री चढ़ाएं।
  2. पूजा सामग्री:
    • दूध
    • 8 पैसे या रुपये
    • 8 रोली के छींटे
    • 8 मेंहदी के छींटे
    • 8 काजल की टिक्कियां
    • एक-एक सुहाली
    • एक दिया
    • एक-एक फल
  3. प्रतिदिन की पूजा:
    आठ दिनों तक प्रतिदिन आशा भगोती की पूजा करें और कहानी सुनें। अंतिम दिन सुहाग पिटारी और सुहाली चढ़ाएं।
  4. सुहाग पिटारी का आयोजन:
    • सुहाग पिटारी में सुहाग की सामग्री (सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां आदि) रखें।
    • आठ सुहाग पिटारियां तैयार करें।
    • इन पिटारियों में तीन सुहाली भी डालें।
  5. उजमन का दिन:
    • उजमन के दिन सुहाग पिटारी सास के पैर छूकर दें।
    • सुहागन स्त्रियों को भोजन कराएं और पिटारी भेंट करें।
    • पूजा के बाद कथा सुनें।

आशा भगोती व्रत की कथा

राजा की पुत्रियाँ और उनका भाग्य

हिमाचल में एक राजा था, जिसके दो पुत्रियाँ थीं—गौरा और पार्वती। एक दिन राजा ने अपनी दोनों बेटियों से पूछा, “तुम किसके भाग्य का खाती पहनती हो?” पार्वती ने उत्तर दिया, “मैं अपने भाग्य का खाती पहनती हूँ,” जबकि गौरा ने कहा, “मैं आपके भाग्य का खाती पहनती हूँ।”

गौरा का विवाह और पार्वती का निर्णय

राजा ने गौरा का विवाह एक राज परिवार के युवक से कर दिया, और पार्वती का विवाह एक भिखारी रूप में शिवजी के साथ कर दिया। गौरा की बारात के स्वागत में राजा ने भव्य इंतज़ाम किए, लेकिन पार्वती की बारात के स्वागत में कोई खास तैयारी नहीं की गई।

कैलाश पर्वत की ओर यात्रा

शिवजी और पार्वतीजी कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े। रास्ते में, पार्वती के कदमों के नीचे हर जगह दूब जलने लगी। शिवजी ने ज्योतिषियों से पूछा, तो उन्होंने बताया कि पार्वती को अपनी माँ के घर जाकर आशा भगोती का व्रत करना चाहिए, ताकि यह दोष दूर हो जाए।

पार्वतीजी का हठ और शिवजी का समर्थन

रास्ते में एक रानी को प्रसव के दौरान कष्ट होते हुए देखा। पार्वतीजी ने शिवजी से अपनी कोख को बाँधने की इच्छा जताई, लेकिन शिवजी ने उसे समझाया कि ऐसा करने से पछताएगी। आगे बढ़ने पर, पार्वतीजी ने एक घोड़ी के बच्चे के कष्ट को देखकर वही इच्छा जताई। शिवजी ने अंततः उसकी कोख बाँध दी।

पार्वती का मायके लौटना

पार्वतीजी अपने मायके पहुँचीं, लेकिन वहाँ के लोग उसे पहचानने से इंकार कर दिए। जब उसने अपना नाम बताया, तो राजा और रानी बहुत खुश हुए। राजा को याद आया कि उसने पार्वती से पहले पूछा था, “तुम किसके भाग्य का खाती हो?” पार्वती ने उत्तर दिया, “मैं अपने भाग्य का खाती हूँ।”

उजमन का व्रत

पार्वतीजी ने देखा कि उसकी भाभियाँ आशा भगोती का व्रत कर रही थीं, तो उसने भी वही व्रत करने की इच्छा जताई। शिवजी ने एक अंगूठी दी, जिससे पार्वतीजी ने व्रत का सामान प्राप्त किया। यह देखकर उसकी भाभियाँ हैरान रह गईं कि पार्वती ने इतनी जल्दी सब तैयारी कर ली।

शिवजी का भोजन और पार्वती का त्याग

शिवजी ने पार्वतीजी के घर के भोजन का आनंद लिया, लेकिन जब रसोई में केवल पतली सब्जी बची, तो पार्वती ने वही खाकर पानी पीकर पति के साथ घर लौटने का फैसला किया। रास्ते में, शिवजी ने पार्वती से पूछा कि उसने क्या खाया, और पार्वती ने सच्चाई बताई कि उसने केवल सब्जी और पानी खाया।

पार्वतीजी की श्रद्धा और उसकी दया

जब पार्वती और शिवजी आगे बढ़े, तो देखा कि जहाँ दूब जल रही थी, अब वह हरी हो गई थी। पार्वतीजी ने एक रानी को कुएँ की पूजा करते हुए देखा, और उसकी मदद की। शिवजी ने पार्वती की ज़िद को देखते हुए उसके लिए गणेशजी की मूर्ति बनाई और उसे कुआँ पूजा करने का मौका दिया।

सुहाग का वितरण

पार्वतीजी ने सुहाग बाँटने का वचन लिया और सभी स्त्रियों को सुहाग प्रदान किया। नीची जातियों की महिलाएँ जल्दी पहुँचकर सुहाग प्राप्त करने लगीं, जबकि उच्च जाति की महिलाओं को पहुँचने में देर हो गई। शिवजी के कहने पर, पार्वती ने उन महिलाओं को भी नाखूनों से मेहंदी, माँग से सिंदूर और काजल देकर उनका सुहाग बना दिया।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि भाग्य, सच्चाई और दया का मेल किसी भी कठिनाई से ऊपर होता है। पार्वतीजी ने अपनी ससुराल और मायके दोनों की इज्जत बनाए रखी और सबको अपने साथ-साथ सौभाग्य दिया।


व्रत का महत्व

  1. सुखद वैवाहिक जीवन:
    इस व्रत को करने से जीवन में अच्छे वर की प्राप्ति होती है और विवाह जीवन सुखमय बनता है।
  2. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
    आशा भगोती व्रत महिलाओं को धैर्य, त्याग, और संयम का महत्व सिखाता है।
  3. समर्पण और विश्वास:
    व्रत करने वालों के जीवन में आत्मविश्वास और आशा का संचार होता है।

FAQs: आशा भगोती व्रत

1. व्रत कौन कर सकता है?
यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी लड़कियों द्वारा किया जाता है।

2. व्रत का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इस व्रत का उद्देश्य जीवन में अच्छे वर की प्राप्ति और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना है।

3. पूजा के लिए कौन-कौन सी सामग्री चाहिए?
पूजा के लिए दूध, सुहाली, सुहाग सामग्री, रोली, काजल, मेंहदी, और फल आदि की आवश्यकता होती है।

4. उजमन क्या है और क्यों किया जाता है?
उजमन व्रत का अंतिम दिन है, जब विधि-विधान से पूजा की जाती है और सुहाग सामग्री सुहागन स्त्रियों को दी जाती है।

5. व्रत कितने समय तक करना चाहिए?
यह व्रत 8 वर्षों तक किया जाता है, और 9वें वर्ष उजमन के साथ समाप्त होता है।

क्या आपने आशा भगोती व्रत किया है? अपने अनुभव और सवाल साझा करें!


Discover more from PoojaMarg.Com

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

error: Content is protected !!