अनन्त चतुर्दशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के शेष शय्या पर शयन और शेषनाग के काल स्वरूप को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उनके अनन्त स्वरूप का स्मरण करने से सभी संकट दूर होते हैं, और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
अनन्त चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि
चरणबद्ध प्रक्रिया:
- प्रातःकाल स्नान और संकल्प:
सुबह स्नान कर शुद्ध होकर व्रत का संकल्प लें। - मंडप स्थापना और प्रतिमा पूजन:
एक चौकी पर मंडप बनाकर उसमें कुशा के सात कणों या अक्षत सहित शेष भगवान की प्रतिमा स्थापित करें। - अनन्त डोरे की पूजा:
14 गाँठों वाला हल्दी से रंगा कच्चा डोरा बनाएं। इसे गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित कर पूजा करें। - मंत्र जाप और डोरा धारण:
पूजा के बाद निम्न मंत्र का जाप करें:
“अनन्त सर्व नागानामधिपः सर्वकामदः।
सदा भूयात् प्रसन्नोमे भक्तानामभयं-करः।”
इसके बाद डोरे को अपनी दाईं भुजा में धारण करें। - अनन्त भगवान की कथा श्रवण:
पूजा के पश्चात् व्रत कथा सुनें, जिसमें अनन्त भगवान के महात्म्य और व्रत की महिमा का वर्णन हो।
अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा
युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ और दुर्योधन का उपहास
युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ
महाभारत के प्रसंग में महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ मण्डप इतना भव्य और आकर्षक था कि जलस्थल की भिन्नता भी महसूस नहीं हो रही थी। युधिष्ठिर की इस महानता को देखकर सभी का मन मोह लिया था।
दुर्योधन का उपहास और प्रतिशोध की भावना
इसी दौरान, दुर्योधन भी मण्डप में पहुंचा। उसने मन्दिर और यज्ञ मण्डल की भव्यता को देखा और द्रौपदी से उपहास करते हुए कहा, “अंधों की संतान हमेशा अंधी ही होती है।” यह शब्द दुर्योधन के दिल में बाण जैसे चुभे और उसने पाण्डवों से बदला लेने का निर्णय लिया।
द्यूत क्रीड़ा में हार और वनवास
कुछ समय बाद, दुर्योधन ने पाण्डवों को द्यूत क्रीड़ा में परास्त किया। हार के बाद, पाण्डवों को प्रतिज्ञानुसार 12 वर्ष का वनवास दिया गया। इस कठिन समय में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से मुलाकात की। युधिष्ठिर ने अपनी सारी समस्या उन्हें बताई और राज्य पुनः प्राप्ति के उपाय की सलाह मांगी।
श्री कृष्ण का उपाय और अनन्त व्रत की महिमा
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को सलाह दी कि वह विधिपूर्वक अनन्त भगवान का व्रत करें, जिससे उनका खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त हो जाएगा। फिर श्री कृष्ण ने एक कहानी सुनाई जो युधिष्ठिर के लिए मार्गदर्शन साबित हुई।
सुमन्त ब्राह्मण और कौडिन्य ऋषि की कथा
सुशीला का अनन्त व्रत
प्राचीन समय में सुमन्त नामक एक ब्राह्मण था, जिसकी पुत्री सुशीला थी। जब वह बड़ी हुई, तो उसका विवाह कौडिन्य ऋषि से कर दिया गया। सुशीला अपने पति के साथ आश्रम की ओर चल पड़ी। रास्ते में जब रात हो गई, तो कौडिन्य ऋषि ने सन्ध्या पूजा करने के लिए नदी के किनारे आसन किया।
स्त्रियों से अनन्त व्रत के बारे में सुनना
वहीं पर सुशीला ने देखा कि बहुत सी स्त्रियाँ किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला ने उनसे पूछा कि वे किसकी पूजा कर रही हैं, तो स्त्रियों ने उसे अनन्त व्रत की महिमा सुनाई। सुशीला ने उस समय ही अनन्त व्रत को अपनाया और 14 गाँठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया।
कौडिन्य ऋषि का अपमान और परिणाम
कौडिन्य ऋषि ने सुशीला के हाथ में बंधे डोरे का कारण पूछा। सुशीला ने पूरा वृतांत बताया। कौडिन्य ने बिना सोचे-समझे वह डोरा तोड़कर आग में डाल दिया, जिससे भगवान अनन्त का अपमान हुआ। इसके परिणामस्वरूप, कौडिन्य ऋषि को कष्ट और दरिद्रता का सामना करना पड़ा।
पश्चाताप और अनन्त व्रत का महत्व
कौडिन्य ऋषि ने अपने कष्टों का कारण पूछा तो सुशीला ने उसे अनन्त डोरे के बारे में बताया। ऋषि ने पश्चाताप किया और वन में चले गए। वहां भगवान अनन्त ने उन्हें दर्शन दिए और कहा, “तुमने मेरा अपमान किया, इसी कारण तुम्हें यह कष्ट झेलना पड़ा। अब घर वापस जाकर अनन्त व्रत करो और 14 वर्षों तक इसका पालन करो।”
अनन्त व्रत से ऋषि का सुख और सम्पन्नता
कौडिन्य ऋषि ने घर लौटकर 14 वर्षों तक अनन्त व्रत और अनुष्ठान किया, जिसके परिणामस्वरूप वह सुखी और सम्पन्न हो गए। उनका दरिद्रता और कष्ट समाप्त हो गया।
व्रत का महत्व
- संकटों का निवारण:
अनन्त भगवान का व्रत करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। - धन-धान्य और समृद्धि:
यह व्रत करने से घर में सुख, शांति, और धन-धान्य की वृद्धि होती है। - पुनः शक्ति और विजय:
भगवान विष्णु का स्मरण खोई हुई प्रतिष्ठा और सफलता को पुनः प्राप्त करने में सहायक है।
FAQs
1. अनन्त चतुर्दशी पर क्या विशेष करना चाहिए?
भगवान विष्णु की पूजा, अनन्त डोरे का धारण, और व्रत कथा श्रवण अनिवार्य है।
2. अनन्त डोरा कितने दिनों तक धारण करना चाहिए?
अनन्त डोरे को पूरे व्रत काल (14 दिनों) तक धारण किया जा सकता है।
3. क्या अनन्त चतुर्दशी केवल विष्णु भक्तों के लिए है?
यह व्रत सभी के लिए है, क्योंकि भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का स्मरण सभी के कल्याण के लिए है।
4. अनन्त चतुर्दशी व्रत का फल क्या है?
इस व्रत से समस्त दुःख और दरिद्रता समाप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
निष्कर्ष
अनन्त चतुर्दशी व्रत जीवन में सुख, समृद्धि, और कल्याण लाने वाला है। भगवान विष्णु और उनके अनन्त स्वरूप की पूजा करके सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है। यदि यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो इसे साझा करें और अपनी राय बताएं।
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