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पूजा विधियाँ, आरती मंत्र, व्रत त्यौहार

आस माता की फोटो
व्रत / त्यौहार

आस माता की कहानी – पूजा विधि और महत्व

आस माता की पूजा विधि, व्रत नियम, उजमन और कथा। जानें आसलिया की प्रेरणादायक कहानी और पूजा के महत्व। आस्था से जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव करें।


आस माता की पूजा कब और कैसे करें?

आस माता की पूजा फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक किसी भी दिन की जा सकती है। यह पूजा विशेष रूप से सुख-समृद्धि और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए की जाती है। पूजा की सही विधि और नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है ताकि शुभ फल प्राप्त हो।

पूजा की विधि-विधान

  1. सामग्री तैयार करें:
    • एक साफ पट्टे पर जल से भरा हुआ लोटा रखें।
    • लोटे पर रोली का सतिया बनाएं।
    • चावल अर्पित करें।
  2. कथा सुनना अनिवार्य:
    • सात गेहूं के दाने हाथ में लेकर आस माता की कथा सुनी जाती है।
    • पूजा के बाद हलवा, पूरी और कुछ रुपए रखकर बायना निकालें।
  3. सासुजी को सम्मान दें:
    • बायना निकालने के बाद सासुजी के पैर छूकर बायना उन्हें दें।
    • पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद ग्रहण करें।

उजमन का महत्व और विधि

आस माता का उजमन विशेष अवसरों पर किया जाता है, जैसे घर में बेटे का जन्म या किसी का विवाह।

उजमन की प्रक्रिया

  1. सात जगह चार-चार पूड़ी और हलवा रखें।
  2. प्रत्येक स्थान पर एक तीयल (नारियल) और कुछ रुपए अर्पित करें।
  3. हाथ फेरकर सासुजी के पैर छूकर बायना उन्हें दें।

उजमन का उद्देश्य माता का आशीर्वाद प्राप्त करना और घर में सुख-शांति बनाए रखना है।


आस माता की प्रेरणादायक कथा

आसलिया की कहानी

बहुत समय पहले के बात एक गाँव में एक आसलिया नाम का आदमी रहा करता था। वो आस माता का पक्का भक्त था। वो नियम से हर वर्ष आस माता का व्रत एवं पूजन किया करता था। आसलिया चौसर का बहुत मंजा हुआ खिलाड़ी था। उसकी एक विशेषता यह थी कि वो चौसर में जीते या हारे पर उसके बाद ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराता था।

आसलिया आये दिन भोजन के लिये ब्राह्मणों को घर लाया करता था। उसकी इस बात से उसकी भाभियाँ और माँ बहुत नाराज रहते थे। एक दिन उन्होने क्रोध में आकर आसलिया को कहा कि आप चौसर में हारों या जीतों हमें उससे कोई सरोकार नही हैं। कोई ढ़ंग का काम तो करते नही और आये जिन किसी न किसी को खिलाने के लिय ले आते हो।“ ऐसा कहकर सभी आसलिया को घर से चले जाने को कह दिया।

आसलिया घर व गाँव छोड़ कर नगर में चला गया। वहाँ शुरूआत में उसे बहुत परेशानियाँ हुई। उन दिनों आस माता का व्रत का समय आया उसने सबकुछ छोड़कर आस माता का व्रत एवं पूजन किया। आस माता की कृपा से उसकी सभी परेशानियाँ समाप्त हो गई। चौसर के खेल ने उसे उस नगर में बहुत प्रसिद्ध बना दिया। उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नही रही। उसके खेल की प्रशंसा सुनकर उस नगर के राजा ने उसे चौसर खेलने के लिये आमंत्रित किया।

राजा और आसलिया में चौसर का खेल चला। राजा उस खेल में आसलिया से हार गया। राजा उसके खेल से बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने प्रसन्न होकर उससे अपनी पुत्री का विवाह करा दिया और उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। आसलिया उस नगर का राजा बन गया। उधर उसके घर छोड़ने के बाद से उसके घर पर विपत्तियाँ आने लगी। उसके परिवार वाले अन्न और जल के लिये भी तरसने लगे। भूख-प्यास से दुखी होकर वो भी भटकते हुये नगर आ गये। उन्होने नगर में आसलिया के विषय लोगों से सुना कि वो प्रतिदिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराता है और उसके समान चौसर कोई नही खेलता।

यह सब बातें सुनकर उन्हे आसलिया की याद आ गई। भूख मिटाने और राजा के दर्शन के लिये वो सभी राजमहल के प्रांगण में पहुँच गये। उस दिन राजा आसलिया ने लोगों को अपने हाथ से भोजन परोसा। अपने परिवारजनों को देखकर आसलिया ने उन्हे पहचान लिया। उन सभी ने भी आलसिया को पहचान लिया। आलसिया ने उन सभी का स्वागत किया और वहाँ सभी से मिलवाया। तब उसके परिवारवाले अपने किये पर लज्जित हुये और उन्होने उससे क्षमा माँगी।

आसलिया ने उनसे कहा मैंने कभी आपकी बातों का बुरा नही माना। जो आपने किया वो आपकी करनी थी और जो मैंने किया वो मेरा कर्म था। मुझे जो कुछ भी प्राप्त हुआ वो आस माता की कृपा से प्राप्त हुआ है। तब सभी लोगों को इस व्रत के विषय में जानकारी और लोगों ने फाल्गुन मास की प्रथमा से अष्टमी के मध्य इसका व्रत और पूजन आरम्भ कर दिया।

हे आस माता! आपने जिस प्रकार अपने भक्त आसलिया की सभी विपत्तियाँ समाप्त की वैसे सबकी करना। इस प्रकार से व्रत करने वाले सभी लोगो को आस माता की कहानी (Aas mata ki kahani) कहनी और सुननी चाहिये।


पूजा का महत्व और लाभ

  1. सुख-समृद्धि:
    आस माता की पूजा से जीवन में धन-धान्य और खुशहाली आती है।
  2. आंतरिक शांति:
    यह पूजा मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।
  3. पारिवारिक संबंधों में सुधार:
    उजमन और बायना परिवार के बीच प्रेम और सम्मान को बढ़ाते हैं।

पूजा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें

  • पूजा हमेशा स्वच्छ मन और तन से करें।
  • कथा सुनते समय आस माता का ध्यान अवश्य करें।
  • बायना निकालने और सासुजी के पैर छूने की परंपरा का पालन करें।

निष्कर्ष: श्रद्धा से बदलता है जीवन

आस माता की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। यह न केवल आर्थिक समृद्धि लाती है बल्कि परिवार के रिश्तों को भी मजबूत बनाती है। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा, तो कृपया इसे साझा करें। साथ ही, अपनी पूजा के अनुभव हमें कमेंट में बताएं।


Frequently Asked Questions (FAQs)

1. आस माता की पूजा कब की जाती है?

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक किसी भी दिन पूजा की जा सकती है।

2. क्या पूजा में कथा सुनना अनिवार्य है?

हां, पूजा में आस माता की कथा सुनना शुभ और आवश्यक माना जाता है।

3. उजमन क्या है और इसे कब किया जाता है?

उजमन विशेष अवसरों पर, जैसे बेटे के जन्म या विवाह के समय, आस माता के आशीर्वाद के लिए किया जाता है।


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